इतिहास

श्री जगदीश लाल आहुजा – आपका जीवन सबके लिए प्रेरणा है

40 वर्षो तक हर रोज चण्डीगढ़ पी.जी.आई. के बाहर लंगर खिलाने वाले श्री जगदीश लाल आहुजा 85 वर्ष की आयु में कैंसर से हार गये। गरीबों के मसीहा कहलाने वाले लंगर बाबा का जीवन संघर्ष की मिसाल है। उन्होंने अपने इस सेवा के मिशन को चलाये रखने के लिए अपनी करोड़ों की जायदाद बेच दी और रुग्ण अवस्था में लगे रहे। ऐसा अनूठा उदाहरण मिलना मुश्किल है।
पेशावर में जन्मे श्री जगदीश लाल आहुजा भारत के बंटवारे के समय 1947 में 4 रुपये लेकर पंजाब के मानसा शहर में आये थे। किशोरावस्था में जीवनयापन के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। कभी नमकीन की रेड़ी लगाते तो कभी फलों की। 1956 में चण्डीगढ़ आये तो भाग्य बदला और केले के व्यापार में लाखों कमाया और कई मकान जायदाद भी खड़ी की। 1980 में उन्होने महसूस किया कि पी.जी.आई. में इलाज के लिए बाहर के स्थानों से आने वाले अधिकतर मरीजों की आर्थिक हालत अच्छी नहीं होती। दवाईयों का खर्च सहन करने के लिए मरीजों के साथ आए संरक्षकों और परिवारजनों को कई बार भूखा सोना पड़ता है। ऐसे में उन्होंने प्रण किया कि मैं पी.जी.आई. में इलाज के लिए आये व्यक्तियों और उनके परिजनों को भूखा नहीं सोने दूंगा और लंगर प्रारम्भ कर दिया। रोज कम से कम 1000 व्यक्तियों के दोनों समय के भोजन व नाश्ते चाय की व्यवस्था की जाने लगी। इस सारे खर्च को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने मकान जायदाद बेचने शुरू कर दिये, परन्तु लंगर जारी रखा।
श्री जगदीश लाल आहुजा जी का कहना था कि उनको लंगर देने की प्रेरणा उनकी दादी माई गुलाबी से मिली थी जो गरीबों के लिए पेशावर में लंगर लगाया करती थीं। वर्तमान में इस काम में उनकी पत्नी निर्मल भी उनका पूरा सहयोग करती थी। उनकी बेटी का कहना है कि वह अपने पिता द्वारा चलाए जा रहे पुण्य काम को चालू रखेंगी।
भारत सरकार ने 2020 में उनको पद्मश्री से सम्मानित किया था। वैदिक थोटस इस महान आत्मा को नमन करता है। हमारे शास्त्रों में धन की तीन गति बताई है। दान, भोग और नाश। यह ईश्वर की कृपा ही होती है, यदि व्यक्ति का झुकाव दान की ओर हो।

नीला सूद

आर्यसमाज से प्रभावित विचारधारा। लिखने-पढ़ने का शौक है।