सामाजिक

प्रसन्नता तो आप के आस-पास ही है

प्रसन्न, आनन्दित, हर्षित, पूर्णतया संतुष्ट, जो अपने या किसी अन्य द्वारा किए हुए कार्य से सुख तथा संतोष का अनुभव हो उस प्रफुल्लिता भाव को ख़ुशी कहते हैं। ख़ुशी का अभिप्राय आनंद, हर्ष प्रफुल्लता, अनुग्रह, कृपा, संतुष्टि, संतोष, शांति, खिला हुआ, तुष्टि, निर्मलता स्वच्छ, प्रसाद, ;युक्त, उचित, कृपालद्ध आदि समझा जा सकता है। ख़ुशी का भाव मन में होने वाली सुखद अनुभूति, उत्त्साह, बढ़ाने वाला भाव इच्छा आदि।
ज़िंदगी एक तराज़ू है, जिस के एक पलड़े में सुख तथा दूसरे पलड़े में दुख, संतुलन और असंतुलन की क्रिया में नीचे-ऊपर प्राप्तियों-अप्राप्तियों के भार से बढ़ाने-घटाने के साथ अपनी सामर्थ्य को गतिशील रखता है।
ज़िंदगी एक ऐसा भव्य सुगंध्ति खिला हुआ सुमन है, जिस की सूक्ष्म कोमल पत्तियों के नीचे नुकीले खार ;कांटेद्ध अपनी चुभन का भंयकर अहसास करवाने में सदैव ही तत्त्पर रहते हैं। ख़ूबसूरत सुमन, सुरभि, छूहन तथा कांटों का चुभनमई अहसास ही जीवन की परिभाषा का साथर्क स्वरूप होता है।
दोस्तो, ख़ुशी किसी भी रूप में मिले, उसका सीध संबंध्, दिल-दिमाग़ तथा जिस्म से होता है। समस्त इंद्रियां ख़ुशी के अहसास से प्रफुल्लित होती हैं। अनेक बीमारियों की एक औषध् िहै ख़ुशी।
ख़ुशी एक एैसा सूक्ष्म अहसास है जिसकी आमद से समस्त इंद्रियों के दर ;पटद्ध अपने आप खुलते हुए मंत्रामुग्ध्-आनंद की क्रिया को पार करते हुए जिस्म के अंदरूनी ;भीतरीद्ध अंगों को ताज़गी, शु(ता, पूर्णता आदि की एक अलौकिक शक्ति प्रदान करता है, जिससे मानव की लम्बी आयु को चार चांद लगते हैं। ख़ुशी शरीर को ऊर्जा देती है।
बचपन से लेकर अंत्तिम सांस तक ख़ुशियों का दारोमदार किसी न किसी रूप में चलता रहता है।
जीवन स्वल्प ख़ुशियों का अद्भुत भव्य संग्रह है। किसी भी व्यक्ति के पास ख़ुशियों का संपूर्ण आसमान नहीं है कि जब दिल चाहे ख़ुशियों के आसमान से सितारा ;ताराद्ध तोड़ ले। ख़ुशियां तो आपके चहुंओर, आपके आस-पास परोक्ष पड़ी हैं अलबत्त्ता, ज़रूरत है उनको कोशिश, उद्यम, परिश्रम, सदृदयता, कर्मठता की आँखों से ढूंढने की। जो मानव ख़ुशियां ढूंढने में विशेपज्ञ होते हैं यां संवेदनशील होते हैं, प्रत्येक तड़पती शैय ;वस्तुद्ध को अपना समझते हैं, वह आस-पास से ख़ुशी ढूंढ लेते हैं।
वातावरण में ख़ुशियों का बहुमूल्य परोक्ष़ तथा प्रत्यज्ञ भण्डार अपने विभिन्न मनोरम तत्त्वों में होता है। केवल ज़रूरत है कि आप को उन तत्त्वों से ख़ुशी कैसे ढूढनी है?
घर से ही ले लेंः माता-पिता, दादा-दादी, पत्नी-पति-बच्चे, पोता-पोती, सांस-बहु-ससर, भाई-बहन, मित्रा, रिश्तेदार आदि रिश्तों की अद्भुत रचना में मालामाल ;भरपूरद्ध ख़ुशियों का खज़ाना है, इसको ढंूढने की ज़रूरत है।
रिश्तों की प्रत्येक ख़्वाहिश ;बंध्नद्ध को मन्दिर के पुजारी की भांति अर्चना-पूजा के थाल में रख कर सच्चे दिल से, सहृदयता से, एकाग्रता की माला पहन कर आरती उतारते जाओ ख़ुशियों का प्रसाद आप के पास होगा। एक दिव्यानंद, लौकिकता की हक़ीकत में आप के मस्तिष्क के गगन में अनेक ही आशाओं के झिलमिलाते सूर्य चांद सितारे उदय हो कर रौशनियों के वंदनवार दिलों के दरवाज़ों ;दहलीज़ोंद्ध के ऊपर सजा देगा। आनंद की एक अनुभूति, एक अतिरूप रौशनी, सच्च खण्ड की पर्यायवाची होकर रूह के सुन्दर गुलशन में भगवत्प्राप्ति और अहसास दे जाएगी।
जीवन के प्रत्येक तत्त्व में, काएनात ;प्रकृतिद्ध ब्रह्मण्ड ;भूगोल, ख़गोलद्ध के प्रत्येक तत्त्व में ख़ुशी छुपी हुई है। ज़रूरत है सहृदयता, सच, नेकी, आध्यात्मिकता, प्यार, नम्रता, अभिवादन-अभिनंदन, संकल्प, प्रण, त्याग, परिश्रम, अंतर्योग, रंग-जाति-पातिरहित, और अपनेपन का तिनका-तिनका इकटठा करके बनाया गया दिल में एक सुक्ष्म-मज़बूत, प्यारा सा, किसी इच्छा की शाख़ पर झूलता सुन्दर घरोंदा हो।
झूठ, रिश्वत, ठग्गीठोरी, बेईमानी, अंहकार ;अहंद्ध आदि तत्त्वों में ख़ुशी चमक कर आती है परन्तु कुछ क्षणों ;पलोंद्ध के लिए और फिर ख़ुदकुशी कर लेती है तथा फिर ज़िंदगी की समस्त क्रियाओं को नरक बना देती है।
जब मानव अपनी सच्ची मेहनत, तन्मय साध्ना, ऊँचे संकल्प, अच्छी जोयनाएं, एकाग्र शक्तियां आदि से किसी प्राप्ति ;उपलब्ध्ीद्ध की बहुत दूर खड़ी मंज़िल को पाने के लिए तत्पर होता है तो उसकी सारी दिमाग़ी तथा शरीरिक शक्ति ईमानदारी तथा संघर्ष के नुकीले रास्तों से निकलती हुई छोटी या दीर्घ प्राप्ति को अपने अस्तित्व में पा लेता है, तो एक चिरस्थायी ख़ुशी का जन्म होता है जिसका आनंद उसके तन-मन-रूह में उत्साह की सुरभि से भरता हुआ उसकी तृप्ति को पूर्णता के बंध्न में बांध् कर अनेक ख़ुशियों का संगम कीर्तिमान करता है।
सारी प्रार्कृातक, भव्यता, अच्छी पुस्तकें, साहित्यिक रसाले, अख़बारों के अच्छे क़ालम, लेख, विभिन्न रिश्तों में राम-भरत की पादुका ;खड़ाएंद्ध सदृश रिश्ते आदि तत्वों में ख़ुशी के सकारात्मक, सौंदर्यपूर्ण सूर्य तथा समन्दर छिपे हुए हैं, जिनको चिंतन, आविष्कारक शक्ति से टटोलने की आवश्यकता होती है।
संवेदशीलता, अहसास तथा महसूस करने की भीतरी शक्तियां जब मानव में उजागर होकर उसकोे अच्छे-बुरे की पहचान, सीखने और मानने की भावना के संग्रह को प्यार की मीठी चासनी में डाल कर एक नईं मीठी-मीठी खूशबूदार कृति तैयार करतीहै तो ख़ुशी का जन्म होता है।
किसी भी मानव ने कोई हज़ार वर्ष थोड़े ही जीना है, ज़्यादा से ज़्यादा मानव की आयु एक सौ वर्ष मान लो। सौ वर्ष तो चुटकी के साथ व्यतीत हो जाते हैं। अब आप देख लें आपकी आयु कितनी है? भला ऐसा महसूस नहीं हो रहा कि आप जिस आयु में हैं, ऐसे नहीं लगता कि यह आयु तो चुटकी की भांति बीत चुकी है। आप सोचेंगे कि कई अध्ूरे काम रह गए हैं, जो नहीं किए, तथा बुढ़ापे ने जीवन की पुस्तक के आख़री पन्ने पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। आप अब कुछ नहीं कर सकते।
दोस्तो, जवानी तथा प्रौढ़ता की आयु एक बहुत ही ख़ूबसूरत, कर्मठ, चर्मस्पर्शी, जानदार आयु होती है। यह आयु ही उपलब्ध्यिों की आयु होती है। परिश्रम, संघर्ष, संकल्प प्रण, निष्ठा, प्रतिष्ठा आदि की आयु होती है। जो लोग इस आयु में अपनी क्षणिक उपलब्ध्यिों, लक्ष्यों के, गोल को प्राप्त कर लेते हैं, उनके ईर्द-गिर्द, आस-पास, हृदय में ख़ुशियों के ढेर लगे रहते हैं।
ख़ुशी ही एक एैसी चीज़ है जो मान को ताज़गी, स्फूर्ति, भव्यता, प्यार-स्नेह-मोह, रिश्तों का आनंद, अपनापन, प्राकृतिक सौंदय, तंदरूस्ती और स्वर्ग ;वैकुण्ठद्ध जैसी आनन्दानुभूति प्रदान करती है।
मैं एक सच्ची घटना आपके साथ सांझी करना चाहता हूँ। मेरा एक परिचित व्यक्ति जो एक अच्छे पद् पर आसीन था, उसने खूब रिश्वत ली, कई हेरा फेरियों-ठग्गियां ठोरियां कीं। बहुत जायदाद बनाई। वह 55 वर्ष के करीब बीमार पड़ गया। डाक्टरों ने कहा इस को कैंसर है। कोई भी बचाव नज़र नहीं आता। उसका ईलाज एक अच्छे अस्पताल में चल रहा था। मैं उसका हाल-चाल पूछने के लिए गया। उसका शरीर गुब्बारे से निकली हवा की भांति था। आँखें बीच ध्सी हुई। सिर के बाल झड़ चुके थे। गोरा चिट्टðा रंग काला हो चुका था। लगता था कोई भूत हो। मैंने उसको कहा, भाई साहिब, क्या हाल है?य् वह मेरी ओर देख कर आंसू बहाने लगा। क्योंकि मैं उसकी जीवनशैली से परिचित था। उसकी अच्छी-बुरी क्रियाओं से वाक़िफ था, मुझे रूआंसे तथा टूटती आवाज़ में कहने लगा, जो कुछ भी जीवन में किया है, सब कुछ दिमाग़ में घूम रहा है। दिल करता है वापिस जाकर, उन सब से मुआफ़ी मांगूं, जिनका मैंने दिल दुखाया है। जिन से ज़्यातदियां की हैं, जिन से बेईमानियों की हैं आदि।
मैंने कहा, भाई साहिब, आप अब वापिस नहीं जा सकते। आप मुझे बताएं कि जीवन क्या है? हमें कैसे जीना चाहिए? कोई संदेश दें? तांकि हम भी कोई पाप न कर सकें। पाप से बच सकें।य्
उसने मुझे इशारे से समझाया। मैं समझ गया तथा एक काग़ज़ तथा जेब से पैन निकाल कर दे दिया। काग़ज़ के ऊपर थिरकते हाथों से उसने बड़े अक्षरों में लिख दिया ‘लव’ ;प्यारद्ध।
दोस्तो, ख़ुशी की मंज़िल प्यार है। सच का प्यार, सहृदयता का प्यार, रिश्ते-नातों का प्यार, दोस्तों-मित्रों-स्नेहियों का प्यार, बेगानों का प्यार, अपनेपन का प्यार, आस-पास का प्यार और प्रत्येक तत्त्व में खिली ध्ूप जैसा प्यार, ऊषा काल जैसा प्यार और एक गलवकड़ी ;गले मिलनाद्ध का प्यार। दोस्तो ख़ुशी को ढूंढ़ने की कोशिश करते रहो, ख़ुशी आपके आस-पास ही तो है।
.– बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409