कविता

महंगाई और दुश्वारियां (काव्य रूपक)

(डुग-डुग डुग-डुग डुग-डुग डुग-डुग)
सूत्रधार- मेहरबानो, कद्रदानो, साहिबानो, आप तो जानते ही हैं, कि महंगाई ने अपना कितना अधिक दबदबा बनाए रखा है, कि हर कोई इससे ख़फ़ा है, परेशान है!
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जो पीछे खड़े हैं, कृपया वे भी बैठ जाएं

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तसल्ली से कुछ सुनें-सुनाएं, काव्य रूपक को सफल बनाएं.
लोग तो इसे “महंगाई डायन” कहने से भी नहीं चूकते. बात सही भी है, यह बहुत बड़ी भयानक समस्या है. अब समस्या है तो समाधान भी होगा.
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इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है. समस्या भी ‘स’ से है तो समाधान भी. मजे की बात यह है, कि समझदारी भी ‘स’ से है. तो क्यों न समझदारी से इस समस्या का समाधान किया जाए!
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इसी समझदारी से इस समस्या का समाधान करने के लिए प्रस्तुत है एक काव्य रूपक “महंगाई और दुश्वारियां”, जिसमें आप सब दर्शकगण भी भागीदार हो सकते हैं.
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जिस भी दर्शक को कुछ बोलना हो, वह हाथ खड़ा करे
अनुमति मिलने पर समस्या पर अपना पक्ष रखे.
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यहां ध्यान देने योग्य बात यह है,
कि आप अपना पक्ष रखते हुए
अपने भाव पर भी संयम रखें और भाषा पर भी.
तो शुरु करते हैं काव्य रूपक-
“महंगाई और दुश्वारियां” बज मेरी डुगडुगी!
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“महंगाई क्या है!
महंगाई एक महामारी है
कोरोना की तरह महंगाई भी एक बहुत बड़ी महामारी है
महामारी में बढ़ती गरीबी है.”
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हां दर्शक भाई, कहिए हाथ क्यों खड़ा किया है,
क्या आपने समस्या पर कुछ विचार किया है?
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“महामारी में बढ़ती गरीबी खुद में एक महामारी है
महंगाई की बढ़ती दर देशवासियों पर भारी है
अमीर गरीब के बीच असमानता की खाई हो रही चौड़ी
इसे जल्दी ही पाटना होगा
अन्यथा देखने को मजबूर होना पड़ेगा
आर्थिक विकास की सूखी होती क्यारी.”
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लीजिए एक और दर्शक भाई ने हाथ खड़ा किया है,
लगता है इन्होंने भी समस्या पर तनिक विचार किया है.
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“इस खाई को पाटने के लिए
सिर्फ सरकार को ही नहीं
हम सबको भी मिलकर प्रयास करना होगा.
सबसे पहले बेरोजगारी पर ही ध्यान केंद्रित करके
उस पर तेज़-तर्रार वार करना होगा.
काम कोई छोटा-बड़ा होता नहीं
जो भी काम कर सकें, मिल जाए करना होगा
काम-कमाई के बिना जीना भी क्या जीना!
छोटी-मोटी ही सही
कमाई करके अपना और परिवार का पेट भरना होगा.”
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“लगता है एक और दर्शक भाई के मन में कुछ बात आई है,
सच ही तो है हर एक की सबसे बड़ी समस्या महंगाई है.”
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“अर्थशास्त्र के अनुसार
महंगाई और जनसंख्या का चोली-दामन का साथ है
महंगाई पर लगाम लगाने के लिए
जनसंख्या को भी नियंत्रित करना होगा, बात बिलकुल साफ है.”
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“आप भी कहिए, हाथ खड़ा करने वाले दर्शक भाई!
कौन सी नायाब बात आपके मन में है आई!
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“यही नियंत्रण और संयम हमें खपत में भी बरतना होगा
कोई भी उत्पादन व्यर्थ गंवाने से डिमांड (मांग) बढ़ती है
डिमांड बढ़ने से सप्लाई (आपूर्ति) की कमी हो सकती है.”
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“दर्शक भाई, आपको भी कुछ कहना है?
लगता है अब तो महंगाई ने यहां नहीं ही रहना है!”
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“सप्लाई की कमी से महंगाई तो बढ़ेगी ही
भ्रष्टाचार को पनपने का अवसर भी मिलेगा
जिसकी लाठी, उसकी भैंस की तरह
जिसके पास बहाने को अधिक पैसा होगा
उसको ही सामान नसीब होगा.”
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आप भी कुछ कह लीजिए,
अपने मन की बात को मुखर कीजिए!
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“भ्रष्टाचार से ही जमाखोरी
और तस्करी को बढ़ावा मिलेगा
तस्करी से अन्य अनेक दुश्वारियां पनपेंगी
ये दुश्वारियां ही
महंगाई के बढ़ने का सबब बनेंगी.”
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हां जी! बोलिए.
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“दुश्वारियों की बात भली चलाई
भुखमरी भी तो लाती है ये मुई महंगाई
और भी सुनिए भुखमरी से बढ़ जाती है
चोरी-चकारी, लूट-खसोट, हाथा-पाई.”
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आप भी कहिए जी!
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“भ्रष्टाचार से रिश्वतखोरी को बढ़ावा मिलता है
रिश्वतखोरी से कुछ ही लोगों की अमीरी का सुमन खिलता है
अमीर गरीब के बीच असमानता भी बढ़ती जाती है
इसी असमानता से अमीर गरीब के बीच की खाई को
चौड़ी होने का अवसर मिलता है.”
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बोलिए जी!
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“इस खाई की चौड़ाइयों को पाटने के लिए
अनेक विकल्पों पर विचार करना होगा
चुनौतियों को अवसर में बदलने का प्रयास करना होगा
महंगाई के बढ़ने की दुश्वारियों पर प्रहार करना होगा.”
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यानी!
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महंगाई से बढ़ती दुश्वारियों पर प्रहार करने के लिए
संयम और नियंत्रण को अपनाना होगा,
संयम और नियंत्रण को अपनाना होगा,
संयम और नियंत्रण को अपनाना होगा.
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“काव्य रूपक में भागीदारी करने के लिए शुक्रिया
महंगाई से बढ़ती दुश्वारियों पर बड़ी समझदारी से विचार किया
अब हम सबको मिलकर कुछ काम करना होगा
भाषा और भाव पर संयम रखने के लिए भी आप सबका शुक्रिया.”
(डुग-डुग डुग-डुग डुग-डुग डुग-डुग)
चल मेरी डुगडुगी कहीं और अलख जगाने!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “महंगाई और दुश्वारियां (काव्य रूपक)

  • *लीला तिवानी

    किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए विचार-विमर्श करना आवश्यक है. यह विचार-विमर्श मिल-बैठकर सबकी भागीदारी और समझदारी से किया जाए, तो सोने पे सुहागा. विचार-विमर्श में बोलने में भाव और भाषा पर संयम, संतुलन और नियंत्रण रखा जाए तो कितना अच्छा हो! यह बोलने वाले के व्यक्तित्व, मानसिक स्तर और स्वयं के सम्मान का परिचायक है.

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