कविता

भोर का सूरज

भोर का सूरज लेकर आता है
नई उमंग व नई      ताजगी
तन मन को नई ऊर्जा देता
कर मानव सूरज की बन्दगी

चिड़ियों के कलरव से गुँजे
गाँव जवार की दशो  दिशा
लाल लाल सूरज की   लाली
जब आती है पूरब     दिशा

बहती है दक्षिणी दिशा की पवन
करती तन को निरोग   शरीर
जो नर नारी टहले  मैदान में
या जो टहले हर दिन नदी के तीर

नया सवेरा का नया है उजाला
जग को देता नया नया आयाम
जब आता जगत का जगदाता
तुमको सहस्त्र सहस्त्र प्रणाम

खेत खलिहान में बजती घंटी
जब बैलों की आती है जोड़ी
लेकर किशान अपना हल बैल
खेतों में करता है जब फेरी

नदियाँ कल कल बहती जाती
सागर से मिलने लेकर पावन नीर
सुबह सुबह लगता है नयापन
हर लेता बीते दिन का तन पीर

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088