सामाजिक

कामकाजी महिलाएं कैसे रखें मानसिक संतुलन

भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति कमोबेस हमेशा से ही दयनीय रही है। पुरूष प्रधान समाज होने के कारण सभी नियम क़ायदे पुरुषों के हितों को ध्यान में रखकर बनाये जाते रहे हैं। सरकार ने तो महिलाओं के हितों पर समय- समय पर क़ानून बनाये हैं, शिक्षा के प्रसार को भी महत्व दिया है। कहीं-कहीं महिलाओं ने अपनी आवाज़ भी बुलंद की है पर हर जगह नहीं। आज भी महिलाओं की ख़राब स्थिति है। शोषण का बुरी तरह शिकार हो रही हैं। अगर महिला आत्म निर्भर है तो भी उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहां बात मज़दूर वर्ग की करें तो रूढ़िवादी समाज के कारण आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होते हुए भी अपमानित होती रहती हैं। इसमे अभी भी विशेष बदलाव नहीं हो पाया है। महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना है। वो किसी की जागीर तो नहीं होती जो कोई उन पर तानाशाही करें। कभी-कभी तो बलात्कार और प्रतिरोध स्वरूप हत्या का शिकार भी होना पड़ता है। हम ऐसे समाज मे रहते है जहाँ लड़कों से बात करते देख भाई हड़काते हैं। पुरुष खुद जिस महिला सहकर्मी के साथ काम करें, हंसें, बोलें तो वो ठीक। उनकी नज़र में उसका देर तक काम करना भी ठीक। अगर यही उनकी पत्नी करे तो गलत। महिला सुरक्षा के नाम पर हम आज भी काफ़ी पीछे हैं। घर में सम्मान पाने, घरेलू हिंसा से बचने के लिये जब एक महिला आत्म निर्भर होने के लिये घर से बाहर निकलती है तो उसे अनेक लोगों की टीका टिप्पणी, तानाकशी, घूरती निग़ाहों का सामना करना पड़ता है। महिला को कामकाजी होने के बाद भी अनेक प्रकार के संघर्ष से जूझना पड़ता है। काम काज के साथ घर की जिम्मेदारियां भी यथावत निभानी पड़ती है। बच्चों के सभी कार्यो को शीघ्र निबटाना पड़ता है। समय से घर लौटने के बावजूद अक्सर घरेलू हिंसा का सामना भी करना पड़ता है। अपनी नौकरी छोड़ कर घर के काम काज को ठीक से निभाना, महिलाओं की ज़िम्मेदारी घर सम्भालना होती है। ऐसे बातें सुननी पड़ती है तब एक महिला दो पाटों के बीच पिस कर रह जाती है। ग़रीब एवं अल्प मध्यम वर्गीय परिवारों की महिलाओं की स्थिति काफ़ी दयनीय है, महिलाओं को अपने वेतन के मामले में भी शोषण का शिकार होना पड़ता है। माना जा रहा है घर, बच्चे और काम-काज को एक साथ सम्भालने का बोझ उनको तनाव ग्रस्त कर रहा है। पीढ़ियों से महिलाएं इन समस्याओं का सामना कर रही हैं। एक महिला घर के कामों के साथ कोई समझौता भी नहीं करती वो घर पर भी बच्चों की शिक्षा, परिवार की देखरेख बुजर्गो की देखभाल, घर और बाहर के कार्यो में खुद को व्यस्त रखती है। ऐसी महिलाएं जो कमाई करके अपने परिवार की आमदनी में योगदान देती हैं वो सराहना, प्रशंसा के योग्य हैं। अन्य एशियाई देशों की तुलना में हमारे देश में कामकाजी महिलाएं कम हैं। अब महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ी है। महिलाओं ने रोज़गार के लिये जोख़िम वाले कार्यो में भी प्रवेश किया है। अब तो सेना और विमान उड़ाने तक में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी है। ये बात भी सही है कि शहरी महिलाओं की तुलना में ग्रामीण महिलाएं अधिक काम काजी हैं।
भारतीय कामकाजी महिलाओं की स्थिति दो पाटों में फसे गेहूं के समान हो गयी है। यदि वो दोनों में संतुलन स्थापित करने में असमर्थ होती है तो उसे भारी निंदा का सामना करना पड़ता है। एक महिला बाहर निकल कर काम करती है तो इससे केवल वो आत्म निर्भर ही नहीं बनती बल्कि उसमें आत्मविश्वास भी बढ़ता है। पर लोग ताने मारते हैं कि बन ठन कर निकल जाती है। गप्पे मारती है, जबकि कब उठना है, कब सोना है, सब घड़ी की सूई तय करती है। कहीं-कहीं तो पति नशे में चूर हो उनकी कमाई भी छीन लेते हैं, शरीरिक प्रताड़ना व मारपीट भी करते हैं। हमारे पड़ोस में रहने वाली रंजना की यही कहानी है। वो छोटे छोटे तीन बच्चों को साईकिल पर बिठा स्कूल छोड़ने जाती और वही से घर-घर काम करने उसी साईकिल से दूर शहर तक अकेली जाती-आती है। लेकिन पति रोज़ नशा करके आता मारपीट भी करता। प्रायः देखा जाता है कि कामकाजी औरतों की राह का रोड़ा उनके परिजन ही होते हैं। ऐसे में महिला रोगमुक्त तनाव रहित जीवन कैसे व्यतीत करे। कैसे दोहरी मार से बचे और एक हंसता परिवार समाज को दिखाये। एक और बात अगर महिला कामकाजी भी है और खूबसूरत भी है और युवा भी है तो परेशानियां और गहरी हो जाती हैं। उसके काम को लोग कमतर मान कर सफलता स्त्री होने के कारण बता दिया जाता है कहीं कहीं पर तो समाज कह जाता है कि उसने अपनी खूबसूरती का इस्तेमाल कर कामयाबी हासिल की। एक महिला मानसिक दबाव में जीवन यापन करती है। समाज की मानसिकता को बदलने की बहुत जरूरत है। हमें खुद को भी बदलना होगा तभी समाज बदलेगा। महिलाओं को अपना तनाव खुद कम करना होगा। मन को शांत रखें, धैर्यवान बनें कुछ भी स्वीकार करने के लिये तैयार रहें। रात में अपने अवचेतन मन मे सकारात्मक छवि लेकर सोएं , अपने काम पर गर्व महसूस करें। हम अपनी शक्तियों को पहचानें और उसे बढ़ाये।ध्यान इस बात पर दे कि हमें क्या करना है, जब हम अपने परिवार, अपने मालिक अपने कर्मचारियों की सेवा, अपने काम से प्यार करते हैं तो हमे जीत खुद ब खुद मिल जाती है।

— आसिया फ़ारूक़ी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र