कविता

नारी ना री नहीं है

नारी को समझना आसान नहीं है,
मगर हम ये कहाँ मानते हैं?
नारी को हम ना री समझते है
शायद सबसे बड़ी भूल करते हैं।
हम नारी को कमजोर, अबला
आश्रिता भर समझते हैं
मगर ये भूल जाते है कि
हमारे अस्तित्व का निर्माण
नारी ने ही तो किया है,
धरा पर जो हमारी पहचान है
उसका मुख्य आधार है नारी।
अपने दूध से हमें मजबूत किया
हमारे अस्तित्व को विस्तार दिया।
हमारी चिंता में हर समय चौकन्नी रही
गीले मेंं सोई, हमें सूखे मेंं सुलाया।
बहन भी तो एक नारी है
पत्नी प्यारी कितनी भी लगती
मगर वो भी तो एक नारी है,
बेटी को जन्म देकर नारी ने
नारी रुप मेंं कन्यादान का सुख भी
देने वाली भी नारी ही है।
दादी, नानी, मौसी, बुआ भी तो नारी है।
मगर हमारी सोच कितनी गिरी है
हम नारी को कुछ कहाँ समझते हैं,
बस हम इतना जरूर करते हैं
कि आज भी नारी को हम पुरुष वर्ग
सिर्फ ना री समझते और नकारते है
घमंड मेंं बहुत इतराते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921