गीतिका/ग़ज़ल

स्वारथ के रिश्ते-नाते

प्रेम सने दो बोल कबीरा।
होते हैं अनमोल कबीरा।।

दुखी-उदासी की बेला में।
देते चीनी घोल कबीरा।।

बिछड़े संगी मिल जाते हैं।
धरती बिल्कुल गोल कबीरा।।

स्वारथ के सब रिश्ते-नाते।
अब तो आंखें खोल कबीरा।।

वाणी से मोती, युद्ध यहां।
जिह्वा अपनी तोल कबीरा।।

कंगूरों की चमक न देखो।
नींव खोखली, पोल कबीरा।।

मानवता की आंखें सूनी।
बजा युद्ध का ढोल कबीरा।।

— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com