कविता

दुआएँ दे रहा हूँ

आँख भर आती है
जब मन की आंखों में
तैरने लगती ही
तुम्हारे भावों की तरलता,
तुम्हारे अपनत्व का वो समंदर
जो पाया देखा और महसूस किया था मैंने
उस दिन मिले थे जब हम
पहली बार बिना किसी योजना के।
पर तुम्हारे जिद भरे प्यार
अनूठे रिश्तों ने जो दिया
उसे व्यक्त करना कठिन है,
जिसका कोई नाम भी न था
जो उस मिलन से पूर्व जो अनाम था,
अब उसे नाम देना कठिन हो रहा है।
क्योंकि तुमने तो नाम के बजाय
आकाश की ऊंचाइयों तक
उस रिश्ते को नया आयाम दे दिया है।
क्योंकि तुमने तो उड़ेल दिया
अपनत्व का वो समंदर
जिसमें तैरता हूं अब तक
और तैरता ही रहूंगा
शायद कल या अंतिम पड़ाव तक भी।
वो अहसास साथ रहेगा मेरे
जो रिश्तों से जुड़ा है तुमसे,
मगर तुमने तो रिश्तों पर
अपने अधिकारों का कब्जा जमा लिया है।
फिर भी मैं खुश हूं, भावुक हूं
रोने का बहुत मन करता है
पर बहुत डरता हूं
जिसकी कल्पना तक न की थी
फिर भी जो मिल गया
उसे खोने देने के डर से।
इतना ही नहीं
नहीं देख सकता तुम्हें आंसू बहाते
या खुद को पछताते
तुम्हारी निश्छलता पर दाग लगाते।
क्योंकि तुमने तो रिश्तों का
मान बहुत बढ़ा दिया है,
अपनी महानता का प्रतिमान गढ़ दिया है,
जिसमें में छिप सा गया हूँ
अपने कद से भी बहुत बौना हो गया हूं,
तुम्हारे आगे नतमस्तक होकर भी
खुशी से फूला नहीं समा रहा हूँ,
तुम्हें दुआएँ अब भी दे रहा हूँ।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921