कहानी

कहानी- जंगल के दावेदार

तुमूल बाबू की सुबह घूमने की आदत बंद नहीं हुई थी। तीस साल पहले जो आदत बनी थी, वो आज भी बरकरार थी । कल ही गांव लौटे थे । और सुबह सुबह घूमने जंगल की ओर निकल गये थे । जंगल पहले से आधा रह गया था । यह देख उसे धक्का सा लगा, ऐसा क्यों हुआ ? मन में कई सवाल उठे । बरसों बाद उस जंगल को नजदीक से देख रहे थे, जिसे बचाने के वास्ते गांव के युवाओं ने  जवानी के अपने पन्द्रह साल समर्पित कर दिये थे !

बरसों बाद आज वह उसी जंगल को फिर नजदीक से देख रहे थे, लगा झाड़ियों ने जंगल पर  कब्जा कर लिया हैं । बड़े और विशाल पेड़  गधे की सींग तरह सिरे से गायब थे उसी के बीच झाड़ियों ने अपनी वजूद कायम कर ली थीं । जो पेड़ बचे हुए भी थे वह  सब के सब टेढ़े मेढे तथा कुबडे थे, यह क्या हुआ ?तुमूल बाबू का ध्यान अटक सा गया था ।

तभी चमन के बड़े बेटे महरू की कही बात ने उन्हें चौंका दिया । महरू कब से उनके पीछे हो लिया था, सोच में डूबे तुमूल बाबू को भनक तक नहीं हो पाई थी । महरू कह रहा था-” बात ऐसी है काकू, कुछ समय से खटिया पटिया गैंग ने जंगल में फिर से उत्पात मचा रखी है । जंगल में एक तरह से कब्जा सा कर लिया है।  रात के अंधेरे में वे लकड़ियां काट ले भागते हैं..!”

सुनकर तुमूल बाबू चिंतित हो उठे थे-” क्या कह रहे हो तुम? कहीं यह वही चरपट गिरोह तो नहीं है जिसे हम गांव वालों ने बरसों पहले जंगल से खदेड भगाये थे । यह तो बड़ी बुरी खबर सुनाई तुमने भतीज । इस जंगल को बचाने के लिए हमने जान हथेली पर लेकर जंगल बचाओ अभियान चलाया था वो भी बारह बरसों तक-तब कहीं अपनी वजूद में लौट पाया था यह जंगल !  उसका यह हस्र ! बहुत ही चिंता का विषय है महरू -भतीज !”

” हां हां, वही गिरोह है, जिसे आज  लोग खटिया-पटिया गैंग कहते हैं -काकू !”

 

दो और से घिरा हुआ था यह जंगल ! जंगल के उत्तर-पूर्व में पक्की सड़क और सड़क से सटा हुआ था अचलगामो गांव और दक्षिण -पश्चिम में चितपुर  गांव था । जंगल के बीचों-बीच से  एक रास्ता सीधे  पक्की  मार्ग से जुड़ जाती थी ! जंगल के अगल बगल बसे गांवों के स्त्री पुरुष इसी जंगल से हर दिन काम आने वाली जलावन की सुखी लकड़ियों से लेकर कुएं की लठा-खुंटा ! बकरियों के पल्हा -पात से लेकर दांतुन तक ! भोज-बिहा में आमडा-झामडा,सब कुछ इसी जंगल की कोख से बाहर निकल कर आती थीं ।

जंगल है तो जीवन है! जंगल है तो सब मंगल है ! इसी भाव-विचार वाले जंगल बचाओ अभियान में शामिल हुए थे । बाद में पूरे गांव का समर्थन मिल गया था । तब कहीं जाकर इस जंगल में फूनगी निकल पाई थी..!

तुमूल बाबू बड़े गहरे भाव से जंगल को निहार रहे थे । थोड़ी देर रुक कर फिर धीरे धीरे कदम जंगल की ओर बढ़ाते चले गए। सुबह की हवा और बचे खुचे पेड़ों की पत्तियों की सरसराहट ने उसके मन की बैचेनी थोड़ी कम जरूर कर दी थी । पर पशोपेश में उलझे रहे । सोचते रहे-” कहीं वन फिर न उजड़ जाएं !”  चिंता ग्रस्त हो घर लौटे थे वह ।

गांव छोड़ते वक्त तुमूल बाबू ने एक भरा-पूरा जंगल दे गया था गांव वालों को । रिटर्न में आधा-अधूरा मिला !

तीस वर्ष तक सी सी एल की नौकरी कर तुमूल बाबू जब रिटायर हुए और घर के लिए चले तो उनके सामने गांव-समाज की कई पुरानी यादें ताजा हो उठी थीं-जीवंत -अनुभूति के साथ ! और वह रोमांचित हो उठे थे । वह सोच रहे थे कि अब गांव-समाज से फिर से जुड़ सकेंगे । गांव में रह कर खेती-बारी कर बाकी का जीवन सुख-शांति के साथ बिताएंगे । अपने सगे-संबंधियों से मिलेंगे-बतियांगे, बैठ सकेंगे जो तीस सालों से छुट सा गया था !

कभी कभी मेला-परब में वह घर जरूर आते थे,पर संन्यासियों की तरह रात बिता कर सुबह निकल जाते । कोई देखता कोई नहीं! पर अब ऐसा नहीं होगा । अब उसके पास समय ही समय था । जो जितना देर रोकना चाहे-रूक जाएगा वह । लेकिन गांव में कदम रखते ही उजड़ते जंगल ने जिस तरह उनका स्वागत किया । रात को वह ठीक से सो नहीं सके ।

गांव के हर किसी का उस जंगल से दांत-काटी रोटी का रिश्ता था । जैसे समाज से हर किसी का बेटी-रोटी का संबंध होता है ।

बकरियों के लिए पल्हा -पात लानी हो तो जंगल! कोनार-गुरमाना साग-पात लाना हो तो जंगल चलो ! सुखी लकड़ियों की जरूरत तो जंगल! जंगली फल केन्द,भेलवा,पियार बेर खानी हो तो जंगल भागो ।सब्जी के लिए ,गैन्ठी,खकसा-कुन्दरी चाहिए तो जंगल चलो!  मतलब जंगल न हुआ खाना-खजाना हो गया जंगल ! जड़ी बूटियों का तो भण्डार ही था जंगल । गांव के सोमरा वैध की जड़ी बूटियों वाला सलसा की मांग उसके जीते जी कभी कम नहीं हुआ था ।  गठिया वात की अचूक दवा के रूप में प्रचलित था उनका लाल सालसा ! औरतें की लाल प्रदर और स्वेत प्रदर की दवा भी जंगली जड़ी बूटियों से सोमरा वैध बना कर दिया करता था जो लाभकारी और गुणकारी में अचूक होता था । आज की तरह तब डॉक्टरी दवा का उतना जोर नहीं था ।

ऐसे में जंगल न रहे तो जानवर तो जानवर मनुष्य का जीवन भी संकट में आ जायेगा ।

सीधे सीधे जंगल के साथ गांव और गांव वालों का अस्तित्व जुड़ा हुआ था ।

पर पिछले साल लाक डाउन की आड़ में जंगल माफियाओं ने चुपके से जंगल में प्रवेश किया और रातों-रात कई ट्रक सखुआ और शीशम के मोटे-मोटे पेड़ काट ले गये । किसी को कानों-कान खबर तक नहीं हुई । वन पाल सब मिले हुए-बिके हुए थे । एक तो लॉकडाऊन की आड़ दूसरा उस चीते वाली खबर  ने भी गांव वालों को काफी हद तक डरा रखा था । कुछ दिन पहले कुछ चरवाहों ने एक चीते को जंगल में घूमते  हुए देखा था । डर से गांव वालों ने जंगल जाना ही छोड़ दिया था । बाद में पता चला वह असली चीता नहीं चीते की खाल ओढ़े एक लकड़ी तस्कर था ।  तुमूल बाबू को याद आ रहा था, पंद्रह सालों की एक लंबी लड़ाई के बाद ही जंगल में हरियाली लौट पाई थी । उसी हरियाली पर खटिया पटिया गैंग की फिर से नजर लग गई थीं ।

ऐसे वक्त तुमूल महतो का गांव लौटना  मूरदों में जान फूंकने और कुल्हाडी की धार में सन चढ़ाने जैसा देखा जा रहा था ।

उस जंगल की कहानी भी बड़ी रोचक और लोक जीवन से जुड़ी हुई थी । चालिस साल पहले और अस्सी के दशक में सरकारी स्तर पर जंगलों की जबरदस्त कटाई हुई थी ।लगभग मोटे और पुराने पेड़ सरकार की ओर से टेंडर लेने वाले ठेकेदार काट कर लेकर चले गए थे । जब ठेकेदारों का काम खत्म हो गया तो इस जंगल पर  चरपट गिरोह की नजर लग गई। करीब चार पांच साल तक इस गिरोह ने काफी उत्पात मचाई और जंगल को पुरी तरह बर्बाद कर दिया, तब गांव वालों की आंख खुली – तब भी नहीं खुलती अगर गांव के नामी किसान जया महतो की मौत नहीं होती ।

वह बकरियों का पल्हा लेने हर दिन जंगल जाता था । उस दिन पल्हा कहीं नहीं मिला तो दूधलता-लतरी काटने लगा था तभी झाड़ी से निकल कर एक विषैले सांप ने उसे डस लिया।घर आते आते उसकी मौत हो गई थी। तब भी गांव वालों को जंगल बचाने की अक्ल शायद ही आती अगर उसी जया महतो की भोज में ही सखुआ पतर की जगह पलास पतर पर खाना खाने को नहीं मिलता । तब गांव वालों की आंखें खुली और नींद से जागे-” जंगल को बचाना होगा नहीं तो जीवन का बचना मुश्किल है..!” समवेत स्वर में निर्णय लिया गया था । तब तक जंगल उजड़ कर टांड-टिकूर जैसा सफाचट हो चुका था । हगते हुए लोग दूर से ही नजर आ जाते। और प्रेम करने वाले झुरमूट ढूंढते फिरते थे, छिपने की कहीं आड़ तक नहीं बचा था । बाकी कसर सूअर मरवा लोगों ने पूरी कर दी थीं । वे लोग जंगली सूअरों को मारने के लिए  हर साल जंगलों में आग लगा देते जिससे पेड़ों की नयी फूनगियों का बढ़ना रूक जाता । उनके साथ भी गांव ने सीधे मोर्चा लेकर आग लगी पर रोक लगाई” तुमलोग जंगल जलाओगे, तो जंगल में आग लगाने वालों को हम जलाएंगे…!”गांव वालों की खुली चेतावनी । बड़ी मुश्किल से आग और आग लगाने वालों पर काबू पाया गया था।इधर बकरियों के लिए पल्हा-पात और शादी बिहा में पतर-दोना खातिर गांव की औरतें दूसरे गांव के जंगल की ओर दौड़ लगाने लगी ।उधर से उल्टे पांव भगा दिये जाने लगे ” अपना जंगल उजाड़ कर अब हमारा वाला उजाड़ने चली आ रही हैं “” कहा जाने लगा था । जंगल के बिना गांव वालों का जीवन बड़ा कठिन हो गया था । लोगों को कई मुश्किलों से गुजरना पड़ रहा था ।।

तभी तुमूल महतो जो उस वक्त तेलो हाई स्कूल का छात्र हुआ करता था । एक शाम उसने अपने कुछ युवा दोस्तों के बीच एलान सा  कर दिया -” गांव के उजड़े जंगल को अब हम बचाएंगे ! कौन कौन इस मुहिम में हमारे साथ शामिल होते हो, सामने आएं ….!”

तब उमापति,चमन, घनश्याम, सीता राम,कैयला,दासो मोदी और छकन सामने आकर एक स्वर में कहा” हम सब आपके साथ है, दिन हो या रात चौबीस घंटे…!”

इस तरह जंगल बचाओ अभियान शुरू हुआ तो जंगल को लेकर कई बार बवाल भी हुआ .! जंगल को लेकर अचलगामो और बरमसिया गांव वालों के बीच की भिंडत भी उसमें शामिल थी । वह एक अंधियारी रात थी। जंगल में लकड़ियां बढ़ने लगी थीं, तभी बरमसिया के कुछ लोग लकड़ी  काटने चुपके से जंगल में घूस गये थे । खबर पाकर अचलगामो वालों ने उन्हें शिकारियों की तरह घेर लिया था । तीर-भाले की जगह कुछ देर लाठी डंडे चले, कुछ लोग घायल हुए तो फिर दुबारा बरमसिया वाले जंगल की ओर ताके भी नहीं ।

सर के बाल सप्ताह दिन में उग आते हैं । जंगल में फूनगी निकलने में छः माह लग गये तब कहीं गांव वालों को सखुआ पतों की दर्शन हुई । एक शाम मुखिया जी की उपस्थिति में पंचायत बैठी और दो प्रस्ताव पास किये गये । जानवरों को जंगल में प्रवेश करने से सख्ती से मना कर दिया गया । प्रस्ताव का पालन नहीं करने वालों को एक सौ ईकावन रूपये से लेकर दो सौ ईकावन रूपये तक पंचायत में जुर्माना भरना पड़ सकता है । इस पर कई स्वर विरोध में उठे” तो जंगल बचाने के चक्कर में हम गाय-बैल बकरी रखना छोड़ दें …?”

” इतना कड़ा कानून तो अंग्रेजों का भी नहीं था..?”

” अंग्रेज भारत में शासन करने आए थे,हम जंगल बचाने निकले हैं । दोनों में काफी फर्क है ..!”

” कुछ तो सहूलियत-रास्ता दिया जाए ताकि हम बकरियों का पालन पोषण सकें ! हमारी नगद आमदनी का जरिया है गाय- बकरी !”

” पतों को बोरी में भर लाकर आप बकरियों को खिला सकते हैं पर किसी भी पेड़ की फूनगी नहीं टूटनी चाहिए..!”

” और किसी ने चालाकी की तो हम लोग उसे भी नहीं छोड़ेंगे ” उमापति के इस धमकी के साथ पंचायत उठ गई थी ।

बेटी सियानी हो जाए और बाहर घूमने लगे और बाप घर में सोया रहे तो लड़की को बिगड़ने का खतरा बढ़ जाता है। पंचायत से प्रस्ताव पास कर देने से ही जंगल पर कुल्हाड़ी नहीं चलेगी ऐसा सोचना ही बेवकूफी थी । ऐसा तुमूल का मत था । उन्होंने चार चार लड़कों की एक टीम बनाई जो तीन सिफटों में बारी बारी से जंगल की पहरेदारी करेंगे ।  ” कोई मजदूरी नहीं कोई वेतन नहीं । जंगल बचेगा तो सब बचेंगे । यही हमारी सोच यही हमारा लक्ष्य है ” तुमूल ने कहा था ।

साथियों ने सहमति दी और रूटीन बन गयी ।

उधर चुपके-चुपके पेडों की फूनगियों की टुंगानी शुरू हो गई थी । कौन कौन यह करने की जुरर्त कर रही थी उनकी चिन्हाप भी कर लिया गया था । एक औरत पकड़ाई तुमूल के हाथों । वह रिश्ते में उसकी भाभी लगती थी । एक दिन तुमूल ने उसे रोक कर माथे का बोझी जमीन पर रखने को कहा तो उसने बोझी तुमूल पर ही पटक दी थी” देख ला …?”

तुमूल ने बोझी की लत ऐसे सरर्र से खोली जैसे  भाभी की साड़ी खोल दी हो ‌। कई आंखों ने देखी पुटूस की बोझी में सखुआ और पुतर की टहनी बीच में बांधी चली आ रही थी ।

” छकन ! ” तुमूल ने संगी से कहा था ” बोझी उठाओ आज शाम को पंचायत बैठेगी तभी इसका भी फैसला होगा…!”

तुमूल  की शादी हो चुकी थी। घर में पत्नी ने कहा” घर में आकर शनिचरिया की मां बड़ी रो रही थी ! पहली बार की बात थी । छोड़ देते !”

” कभी कभी बकरी बाग – बगीचा को और मेहरारू जंगल-झाड को बर्बाद कर देती है । दोनों को कन्ट्रोल में रखने से ही यह  सब बचेगा । ” तुमूल ने कहा ।

शाम को जंगल बचाओ अभियान समिति की मीटिंग हुई । जंगल बचाओ अभियान का पहला साल ! एक कामयाब साल ! मीटिंग में पकड़ाई भौजी की बोझी का भी फैसला होना था । बैठक में खचर खचर शुरू हो गई थी । लेकिन साल भर में जंगल में जो फूनगी फुटी और हरियाली लौटी थी उसे देख सारा गांव खुश था । बच्चे बुढ़े खुश थे । जंगल के सभी ठूंठ लकड़ियों से बांस करील सा पेड़ों के बढ़ने से गांव के युवाओं में एक जोश सा भर दिया था ।

” साल भर में ही जंगल में जो हरियाली लौटी और पेड़ पौधों में जो विकास हुआ । गांव वालों के सहयोग के बिना संभव नहीं था । इस जंगल को हम एक विशाल जंगल में बदल देगें । आप सबों से इसी तरह की सहयोग की आशा रखते हैं!” तुमूल ने सभा के बीच अपनी बात रखते हुए कहा था-” अगर किसी को कुछ कहना है तो बेझिझक आकर कहिए…!”

” हमारा एक ही मकसद है जंगल को फिर से हरा भरा कर देना ताकि हमें दूसरों से कुछ मांगना न पड़े ” उमापति ने कहा ।

” वनवा के फिर से हरा भरा देख तोहनीं से बडी खुश हियो हम ! ” सोमरा वैध ने कहा-” जड़ी बूटी सब अब बड़ी जल्दी मिल जा हअ ! पहिले खोजते खोजते थअक जा हलिय !” वैध जी वाह वाह कर सबों को शब्बासी दे रहा था ।

” अभी साल दो साल, बोझा- बाझी और पल्हा बोझा बंद रहना चाही !” चमन का विचार था ।

अंत में कुछ नोक झोंक के बाद जंगल बचाओ अभियान समिति ने शनिचरिया की मां की बोझी वाले केस को यह कहते माफ कर दिया  कि साल भर में यह इकलौता मामला है । पर इस तरह कोई दूबारा न करें !

”  इस तरह लायते अगर हम ककरो देख लेलिअ तो ओकरा हम पिंधना खोइल देबअ !  ” शनिचरिया मां की एलान ! इस पर लोग खूब हंसे ।

” ठीक है !” किसी ने कहा ।

” एक चोर जब दूसरे चोर पर नजर रखने लगे तो चौकीदारी का काम आसान हो जाता है ” तुमूल ने कहा -” पर हमें जागते रहना है ।”

छोटी-मोटी घटनाओं को छोड़ दें तो,उस दिन के बाद का दस साल का एक लम्बा समय बीत गया और जंगल अपने पैरों में खड़े हो गया था । पेड़ अब आसमान को आंख दिखाने लगे थे और गांव वालों को उनकी जरूरत के हिसाब से सुखी और कच्ची लकड़ियां मिलने लगी । बकरियों के लिए पल्हा पात के लिए छूट दे दी गई थी । जंगल अपनी पूरी वजूद में लौट आया था जिसे देख गांव वालों में काफी खुशी थी  । तभी तुमूल बाबू को नौकरी लग गई। एक भरा पुरा जंगल गांव वालों को सौंप वह कोलियरी चले गये और फिर जैसे कोलियरी का ही होकर रह गये थे । गांव और जंगल से उनका  नाता टूटता चला गया था । गांव के लिए मेहमान और जंगल से अंजान होते चले गये थे ।

इसके साथ ही तुमूल बाबू की सोच का क्रम भी टूटा था । लौटने के क्रम में महरू से उसने पूछा-” जंगल कटने की सूचना तुम लोग फोरेस्ट विभाग को कभी दिया ..?”

” हम पांच लड़के दो बार फोरेस्ट रेंजर से जाकर मिले, हां- वनपाल को भेजेंगे, कह कर टरका दिए, आज तक कोई झांकने तक नहीं आए…!” महरू ने बताया ।

” आज शाम, गांव वालों की मीटिंग बुलाओ, गांव में ढोल ढेढाय करवा दो.. जंगल की मीटिंग है..सबको आना है..लो यह कुछ पैसे रख लो ढोल वाले को देना होगा.!”

” ठीक है काकू..!” कह महरू अपने घर चला गया । वह काफी खुश था । यही तो वो चाहता था । जंगल बचाने की लडाई में कोई तो आगे आए, कोई तो इस अभियान का नेतृत्व करे । जंगल बचाने के लिए उसे कई डंडों की तलाश थी- तुमूल बाबू के रूप में एक मजबूत लाठी ही मिल गयी थी ।

उस दिन शाम को बरसों बाद जंगल बचाओ अभियान की मीटिंग हुई । परन्तु अपेक्षा अनुरूप लोग मीटिंग में शामिल नहीं हुए । कारणों का स्पष्ट पता न चल सका । कुछ ने रोजी रोजगार के लिए युवाओं को बाहर चले जाने की बात कही तो बहुतों ने दिन रात खदानों से कोयला चोरी करने जाना, इसका सबसे बड़ा कारण बताए थे । यह देख सुन तुमूल बाबू जरा भी निराश नहीं हुए । वह बड़े ही जीवट और जिददी किस्म के इंसान थे,जो ठान लेते, उसके लिए जान लडा देते-जल्दी से हार नहीं मानते और हताश भी नहीं होते, ऐसे कई उदाहरण उनके जीवन के साथ जुड़े हुए थे । कोलियरी में काम करते हुए मज़दूरों के हक अधिकार के लिए लड़ने भिड़ने का खाशा अनुभव और तजुर्बा लिए हुए वह गांव लौटे थे । सो मीटिंग में शामिल हुए कम लोग और उनके बंटे विचारों को सुन  उनकी सोच में कोई फर्क नहीं पड़ता दिखा था । वह इसी बात से उत्साहित थे -” कुछ भी हो परन्तु जंगल बचना चाहिए “” मीटिंग में शामिल लोगों ने  एक स्वर में कहा था । यही बात तुमूल बाबू को जंगल बचाओ अभियान को आगे ले जाने के लिए काफी था । ”  जंगल बचाओ अभियान फिर से शुरू की जा रही है”  इसकी लिखित सूचना थाने में दे दी जाए ! कुछ का सुझाव आया था तो मीटिंग में कुछ मोबाइलिया लड़कों ने बेतूका सवाल भी खड़े किए ” जंगल बचाना सरकार का काम है,हम क्यों मुसीबत मोल लें..!”

तो तुमूल बाबू ने  कहा-”  हर काम अगर सरकार ही करेगी तो फिर पढ़ लिखकर तुम सब क्या करोगे ..? सरकार आपके कपड़े की गंदगी साफ  करने नहीं आएगी-खुद करना होगा ! जंगल बचेगा तभी तुम्हारा मोबाइल बचेगा और तभी तुम अपने छॉपी वाले उड़ते बालों का सेल्फी ले सकोगे…!”

लड़कों की बोलती बंद हो गई ।

सप्ताह दिन तक जंगल बचाओ अभियान का सघन बैठकी अभियान चला । तुमूल बाबू खाना पीना त्याग दिए थे । बस उनका एक ही धुन लोगों को इस मूवमेंट से जोड़ना। जंगल बचाने की बात गांव के टोले टोले तक पहुंचाना । इधर घर में

इस बात को लेकर पत्नी नाराज” जंगलवा के झमेले में काहे पड़ते हैं, अब इन बुढ़ी हड्डियों को आराम दीजिए और घर में बैठिए…!” तुमूल बाबू ने इसका कोई जवाब नहीं दिये ।

जंगल के इस मुहिम से बेटा भी खुश नहीं लग रहा था “ बचपन से लेकर आज तक तो लड़ते भिड़ते रहे है,अब तो विराम दीजिए,जिन लड़कों को आप मुहिम से जोड़ने की बात करते हैं उन्हें मोबाइल से फुर्सत मिले तब न…!”

“ बेटे जीवन में कभी पढ़ना और लड़ना बंद नहीं होता। कहावत सुनी है न -“जीवन एक कुरूक्षेत्र है युद्ध चलता रहता है…!”

“ यह शब्द भी आपने अपने लिए गढ़े हुए हैं…!”

बेटे ने इसके आगे फिर कभी कुछ नहीं कहा । वह बाप के उसूलों से बचपन से वाकिफ था ।

सप्ताह दिन बाद फिर एक मीटिंग रखी गई । इस बार लोगों ने बढ़ चढ़ कर मीटिंग में हिस्सा लिए और सब ने एक स्वर में आवाज दी-” हर हालत में जंगल बचाया जाए…!”

“ एक लिखित सूचना थाने को दे दी जाएं..!” लोगों ने पुनः जोड़ा था ।

दूसरे दिन गांव वाले थाने पहुंचे और मदद की गुहार लगाई !

” जंगल बचाने में हमारी मदद की जाए…!”

” यह फोरेस्ट विभाग का मामला है । हर काम  थाने वाले ही करेंगे तो फोरेस्ट डिपार्टमेंट वाले क्या भिन्डी बाजार की रखवाली करने के लिए वनपालों को पाले रखें है ? जाइए अपना दुखड़ा उन्हें सुनाइए जाकर…!” पूरी बात सुनी भी नहीं, उल्टे थानेदार ने खड़े खड़े सभी को झाड़ दिया था ।

” इतना तो हमें भी मालूम है सर ! जाना तो वहां भी है। हम आपको यह जनाने आये थे कि लकड़ी तस्कर हमारे गांव के जंगल को उजाड़ने पे तुले हैं वे अगर अपनी हरकतों से बाज नहीं आए तो हम भी चुप नहीं बैठेंगे- उजड़ते जंगल को देख हाथ पे हाथ धरे खड़े नहीं रहेंगे, अपना जंगल बचाने के वास्ते,जान भी लडा देंगे हम ! तब आप अपना कानून लेकर गांव में घूमने मत लगिएगा….!” कह तुमूल बाबू लड़कों को साथ लिए थाने से बाहर निकल आए थे ।

” इस बूढ़े में अभी भी बहुत जान बाकी है…!” थानेदार बोल उठा था-” कुछ तो करेगा यह…!”

थाने से फूटबॉल की तरह लात खाये-खिशियाए तुमूल बाबू सीधे फोरेस्ट विभाग में जा घुसे । दस बारह की संख्या में लोगों को अचानक सर पे सवार देख ऑफिस में मौजूद रेंजर रघुवीर यादव ” क्या बात है.. क्या बात..?”कहते हुए खड़े हो गए थे-” कौन है आप लोग और इस तरह ऑफिस में घुसने का क्या मतलब है..?”

” हम अचलगामो गांव से आए हैं, हमारे गांव के पास जो जंगल है, उस जंगल से बड़े पैमाने में लकड़ी तस्करी हो रही है और हमारे पास जानकारी है, उनके साथ आपके कई

वनरक्षी भी मिले हुए हैं । उन्हें समझाइए  वरना गांव के तपाकी लड़के अबकी उन्हें छोड़ेंगे नहीं.. यही सूचना देने आए थे.चलते हैं..!” और किसी जवाब का इंतजार किए लड़कों के साथ तुमूल बाबू तुमली का काटा आदमी की तरह वहां से भी निकल गये थे ।

पीछे रघुवीर यादव को एक वनरक्षी से कहते सुना गया- ” बाप रे बाप ! यह आदमी था या आफत, स्याला हिला के चला गया…!”

लौटते वक्त रास्ते में  ठाकुर पत्रकार मिल गया, उसने तुमूल बाबू से कहा-” आप लोगों को क्या लगता है, थानेदार और रेंजर आपकी मदद करेगा?..सब मिले हुए हैं, सबको हफ्ताह मिलता है, अखबार में छापने से हमें मना करते हैं.. जो करना होगा, आप लोगों को अपने दम पे करना होगा.लेकिन होशियारी से.. हां हम गांव वालों के साथ है…!”

सब्जी खरीदने की उम्र में थाने में जाकर शेर की तरह दहाड़ने और फोरेस्ट विभाग के ऑफिस में घुस कर लंका काण्ड करने की धमकी देने के बाद तुमूल बाबू को यह नहीं भूलना चाहिए था कि लकड़ी तस्कर भी उसके साथ कोई काण्ड कर सकते हैं और जिसकी प्रबल संभावना भी थी । और ऐसा  हुआ भी ।  तुमूल बाबू पर उस वक्त जानलेवा हमला हुआ जब वह जंगल भ्रमण कर शाम को महरू के साथ घर लौट रहे थे ।  तभी एक सुनसान सी जगह पर झाड़ियों के पीछे घात लगाए छिपे  सात आठ लोगों ने लाठी डंडों से अचानक उन पर हमला कर दिए और तड़तड़ा कर लाठियां बरसाने लगे,महरु बीच बचाव को कुदा तो उसे भी लहुलुहान कर सभी झाड़ियों के पीछे गायब हो गये थे ।

हमले की खबर से गांव में एक सनसनी फ़ैल गई । घर के जलते  चूल्हे छोड़ लोग गली में आ गये और बियारी-पानी का समय होते- होते, पूरा का पूरा गांव तुमूल बाबू के घर के बाहर जमा हो गए थे । सबों की एक ही राय-” हम सब तुमूल बाबू के साथ है..!”

” हम बदला लेगें…!”युवा बेहद उत्तेजित थे ।

घर में उनका बेटा भी गुस्से में था-“ बाबू जी हम आपको खोना नहीं चाहते,आज आपको कुछ हो जाता तो…?”

“ इसे हमारी नहीं, जंगल की चिंता है..!”पत्नी बोली

तुमूल बाबू ने किसी का जवाब नहीं दिया और…

” इस मार पीट की सूचना थाने में दे देनी चाहिए…!” बाहर कोई कह रहा था ।

तभी सर पे पट्टी बांधे तुमूल बाबू घर से बाहर निकल आए-

” कोई लाभ नहीं होगा..सब मिले हुए…!” उन्होंने कहा -” गांव के कुछ लोग भी उनमे शामिल हैं,आज की घटना इन्हीं लोगों की साज़िश का परिणाम है, अगर वे यहां है तो सुन लें, हमें अपनी जान की डर नहीं है । इस जंगल को बचाने के खातिर हम पहले भी लड़े थे आज भी लड़ने को तैयार  हैं लेकिन जंगल को किसी भी सूरत में लूटने नहीं देंगे..!”

” हम सब आपके साथ हैं…!” युवाओं ने हुंकार भरी

” हम सभी आपके साथ हैं..!” पूरा गांव बोल उठा ।

उसी पल बाहर से दो लड़के पहुंचे और तुमूल बाबू के कानों में कुछ कहने लगे । सुनकर तुमूल बाबू के चेहरे पर जबरदस्त बदलाव हुआ । वह अपनी चोटें भूल गए और दर्द को सीने में दबाते हुए कहा-” जंगल के दुश्मनों को सबक सिखाने का समय आ गया है । अभी के अभी हम उन पर  धावा बोलेंगे.. कितने लोग तैयार हो…?”

” हम सब तैयार हैं..! ” सारे गांव का एक स्वर ।

” जंगल बचाने के लिए जान भी चली जाए तो भी हम पीछे नहीं हटेंगे…!” युवाओं ने जोड़ा था ।

” आप पहले भी जंगल बचाओ अभियान का नेतृत्व कर चुके है,आज भी आप को ही करना होगा..काकू..! ” महरू भी सर पे पट्टी बांधे सामने आकर खड़ा हो गया था ।

” हां हां आज से आप हमारे अगुआ है..हर तरह से हम सब आपके साथ हैं…!” युवाओं ने आवाज बुलंद की ।

एक जंगल में समूचे गांव का मंगल छिपा हुआ था !

चंद मिनटों में ही माहौल में काफी बदलाव आ गया था

” भाईयों और नौजवानों, इतिहास गवाह है,जोरू-जमीन और जंगल तभी सुरक्षित बच पाया है,जब उसके बचाव में लोगों ने खून बहाये हैं..!”तुमूल बाबू जैसे रात को ललकार रहे थे ” देखा न अपने विरोध में उठने वाली आवाज को किस तरह दबाने की कोशिश की गई, उन्हें मालूम है कि हमारे पास गोली बंदूक नहीं है लेकिन उसे यह मालूम नहीं कि जंगल बचाव में उठे ये सैकड़ों हाथ किसी को भी मिट्टी में मिलाने के लिए काफी है, उनकी लाठी-गोली का जवाब देने के लिए हमारे पारम्परिक हथियार ही काफी है..बस हमें एक साथ मिलकर दुश्मनों का मुकाबला करना होगा, आप सब तैयार हैं न..?”

“ हम सब आपके साथ हैं…..!”सामूहिकता के स्वर से रात कांप उठी थी ।

पारम्परिक हथियारों से लैस अचलगामो वाले जब चले तो, उनमें एक ज्वार सा उमड़ रहा था । उत्तेजना के कारण युवाओं के पैर सीधे नहीं पड़ रहे थे । जैसे रात के अंधेरे में किसी ने मशाल जला दी हो । उनके भावों से प्रतीत होता कि उनमें चट्टानों से भी टकराने की हौसला आ गई हैं । तलवार फरसा और तीर धनुष लिए जंगल की ओर उनका निकल जाना किसी मिशन से कम नहीं था । कोई घंटा भर बाद ही

हथियारों से लैस गांव वालों ने लकड़ी चोरों को जंगल में उसी तरह  चारों ओर से घेर लिये थे जैसे शिकारी जंगली सूअरों को घेर लेते हैं । इस घेरे बंदी से अनजान लकड़ी चोर उस वक्त दोनों ट्रेक्टरों पर लकड़ियों की लदाई कर रहे थे । जमीन पर लेट कर दूर से ही तुमूल बाबू ने उन्हें ललकारते हुए कहा था-” लकड़ी चोरों, गांव वालों ने तुम सबको चारों ओर से घेर लिया है, जान प्यारी है तो हाथ ऊपर उठा कर सभी खड़े हो जाओ …!”

सुनकर ही लकड़ी चोरों को पसीना छूट गया । लेकिन वे भी कम तैयारी के साथ नहीं आए थे । रिवाल्वर साथ लेकर आए थे । दोनों ओर से तनातनी शुरू हो चुकी थी । और वाक् युद्ध भी-” शाम की कुटाई से सबक नहीं सीखा-मरने चले आए…!”उस ओर से कहा गया था ।

-” अब देख लो कौन मरने चले आए हैं..!” “तुमूल बाबू ने ताल ठोकी थी ।

तभी आवाज की दिशा में गोली चल गई” धांय..धांय.!” सभी का जमीन पर लेटे होने से ।  लकड़ी चोरों की दोनों गोलियां बेकार गई । जवाबी हमले की बारी थी । तभी खड़े होकर तुमूल बाबू ने ललकारते हुए सभी से कहा था  -” तीर चलाओ.. सन..सना के….!”

अगले ही पल लकड़ी चोरों के बीच चीख़ पुकार शुरू हो गई  ”  ओ मां..,  मत चलाओ..!” पहली चीख

” मैया गो मैया..!’ दूसरा चीखा

” मां.य.अ.अ..!” यह चीख जंगल के अंधेरे को चीरती निकल गई थी…!” इसी के साथ भागते कदमों की आवाजें …!

जंगल काण्ड की सूचना किसी ने रात को ही थाने को दे दी थी । सुबह गांव में पुलिस आई किसी ने मुंह नहीं खोला । थानेदार तुमूल बाबू से मिला और चोट का कारण पूछा-” आपको यह चोट कैसे लगी..?”

” छत से नीचे उतर रहा था, सीढ़ी पर पैर फिसल गया, गिर पड़ा..बुढा हो गया हूं न..!” तुमूल बाबू का जवाब था

अगले दिन अखबारों की सुर्खियां थीं ” रात को लकड़ी चोरों पर गांव वालों  का हमला । दो घायल, एक की हालत नाज़ुक ! लकड़ी से लदे दो ट्रेक्टर ट्राली जब्त….!”

— श्यामल बिहारी महतो

*श्यामल बिहारी महतो

जन्म: पन्द्रह फरवरी उन्नीस सौ उन्हतर मुंगो ग्राम में बोकारो जिला झारखंड में शिक्षा:स्नातक प्रकाशन: बहेलियों के बीच कहानी संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित तथा अन्य दो कहानी संग्रह बिजनेस और लतखोर प्रकाशित और कोयला का फूल उपन्यास प्रकाशित पांचवीं प्रेस में संप्रति: तारमी कोलियरी सीसीएल में कार्मिक विभाग में वरीय लिपिक स्पेशल ग्रेड पद पर कार्यरत और मजदूर यूनियन में सक्रिय