इतिहास

ताश का महल धराशायी होगा

जी हाँ, आपने सही पढ़ा है। अलीगढ़ छाप वामपंथी इतिहासकारों ने मुस्लिम शासन विशेष रूप से मुगल शासकों का जो चमकदार इतिहास बना रखा है, वह अब धराशायी होने वाला है और सच्चा इतिहास सामने आने वाला है, जिसमें इन शासकों का असली क्रूर और ऐयाश चेहरा उजागिर हो जाएगा, जिसे सबको मानना पड़ेगा।
विगत कुछ दिनों की घटनाओं को लीजिए। अयोध्या में राममन्दिर बन रहा है, वह भी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से, जिसमें यह पूर्णतः सिद्ध हो गया था कि उस स्थान पर पहले श्री राम का मन्दिर था, जिसको तोड़कर बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मस्जिद जैसा ढाँचा बना दिया था। काशी में उच्च न्यायालय के आदेश से ज्ञानवापी मन्दिर परिसर का पूर्ण सर्वेक्षण किया जा रहा है, जिससे यह सिद्ध हो जाएगा कि औरंगजेब के आदेश से पहले से बने हुए मन्दिरों को तोड़कर उनकी ही दीवारों के ऊपर मस्जिद जैसा ढाँचा जबर्दस्ती बना दिया गया था। मथुरा के कृष्ण जन्मस्थान पर बनी ईदगाह मस्जिद में भी ऐसा ही सर्वेक्षण कराने की माँग की जा रही है, जिससे औरंगजेब की करतूतें उजागिर हो जायेंगी।
यों तो देशभर में ऐसी हजारों मस्जिदें हैं, जो मन्दिरों को तोड़कर और अधिकतर उनके ही मलबे से उसी स्थान पर बनायी गयी हैं। लेकिन ये तीन प्रमुख स्थान हैं, जिनके लिए हिन्दू समाज लम्बे समय से संघर्ष करता रहा है।
अब तो इन मन्दिरों से भी आगे बढ़कर हिन्दू समाज द्वारा यह माँग की जा रही है कि ताजमहल के परिसर की पूरी जाँच होनी चाहिए और उसके बन्द तहखानों तथा कमरों में रखी गयी सामग्री जो भी हो उसका पूरा सर्वेक्षण होना चाहिए, ताकि अन्तिम रूप से यह सिद्ध हो जाए कि वास्तव में यह भव्य महल किसने बनवाया था, जिसका श्रेय शाहजहाँ को दिया जाता है। इतिहासकार पी.एन. ओक ने अपनी एक पुस्तक में यह सिद्ध किया है कि यह महल शाहजहाँ के समय से बहुत पहले से बना हुआ था, जिस पर शाहजहाँ ने कब्जा करके उस पर कुरान की आयतें खुदवाकर स्वयं द्वारा बनवाया गया प्रचारित कर दिया था। वामपंथी इतिहासकारों ने न तो कभी इस पुस्तक के किसी तर्क का खंडन किया और न ओक साहब को इतिहासकार की मान्यता दी।
लेकिन सत्य अधिक समय तक दबा नहीं रहेगा। यह बात शीघ्र ही सामने आएगी कि मुस्लिम बादशाहों ने वास्तव में कहीं कोई बड़ी इमारत नहीं बनवायी थी, बल्कि पहले से बनी हुई इमारतों पर कब्जा किया था। इसके साथ ही वामपंथी इतिहासकारों द्वारा बनाया गया मुगल शासकों का वह महिमा मंडल छिन्न-भिन्न हो जाएगा, जिसने अभी तक सारे संसार को धोखे में रखा है और जिसके बारे में एक इतिहासकार स्मिथ ने स्पष्ट लिखा है कि भारत में प्रचारित मुगल इतिहास एक खूबसूरत धोखा है।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल
वैशाख शु. 10, सं. 2079 वि. (11 मई 2022)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com