सामाजिक

कृतज्ञता एक संस्कार है

कुदरत द्वारा सृष्टि की रचना कर उसमें मानव योनि को इस पूरी कायनात का सबसे बड़ा तोहफा, सर्वश्रेष्ठ बुद्धि देकर मानवीय गुणों का सृजन किया है। सकारात्मक मानवीय संस्कारों की झड़ी भी लगा दी है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण गुण मानवीय आचरण है तथा उस आचरण का एक विशेष महत्वपूर्ण अंग है कृतज्ञता यह एक संस्कार है, मानवीय श्रृंगार है, गुणवत्ता, संवेदनशीलता नीवांपन की निशानी है। यह केवल आभार  धन्यवाद, शुक्रिया,साधुवाद इत्यादि शब्दों का सूचक मात्र ही नहीं है अपितु हार्दिक आभार के भार से नमित सुकर्म होता है। कृतज्ञता अपने व्यक्तित्व में रखना सम्मान की बात है संकटकाल में काम आनेवाले महानुभावों के ऋणी होने की अभिव्यक्ति भी है।
बात अगर हम कृतज्ञता की इत्र की भांति सुगंधित महक की करें तो, कृतज्ञता वह सुकृत्य है जो व्यक्ति के सुसंस्कृत होने का भान कराती है, साथ ही उसे सामाजिक और सांसारिक भी बनाती है। कृतज्ञता एक संस्कार है। इससे संस्कारित व्यक्ति विनम्रता की मूर्ति होता है! जहां दूसरों की सहायता एवं सेवा करना उत्कृष्ट मानवीय कर्तव्य है वहीं संकट की विषम स्थिति में दूसरों द्वारा अपने प्रति की गई सहायता एवं सेवा के लिए कृतज्ञ व्यक्तित्व अपने हृदय में उसके प्रति विशेष आदर का भाव रखता है। सहृदयता का प्रतिकार वह विनम्र आभार द्वारा चुकाता है। कृतज्ञता मानवता की सर्वोत्कृष्ट विशेषता है। यह हमें आभास कराती है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष किसी भी रूप में और कभी भी यदि किसी व्यक्ति ने कोई सहयोग और सहायता प्रदान की है, तो उसके लिए यदि कुछ न कर सके, तो हृदय से आभार अवश्य प्रकट करें।
वहीं कृतघ्नता इसके विपरीत एक आसुरी वृत्ति है, जो इंसान को इंसानियत से जुदा करती है।कृतज्ञता प्रकट ना करने से आसुरी वृत्ति के भाव उत्पन्न होते हैं जो जीवन की प्रगति और सामाजिक प्रतिष्ठा में भारी बाधा बनते हैं। ऐसे व्यक्ति से उसके निजी संकट के समय में भी उसके अपने और समाज के लोग दूरी बनाए रखते हैं। उसके ऊपर दुखों का पहाड़ टूटने पर भी अपने भी पराए हो जाते हैं इसीलिए कृतज्ञता को अनिवार्यता से रेखांकित करना आज के समय की मांग है।
कृतज्ञता अनुग्रहकर्ता के प्रति अनुग्रहीत होने का भाव -ज्ञापन भी है। जहां अनुग्रहकर्ता वंदनीय एवं उसका कृत्य अभिनंदनीय होता है वहीं अनुग्रहीत होकर कृतज्ञता ज्ञापित न करने वाला निंदनीय होता है। कृतज्ञता के ज्ञापन से जहां एक ओर अनुग्रहकर्ता को अपने किए कार्य की महत्ता का ज्ञान एवं उसके कृतज्ञता रूपी प्रतिफल का आनंद प्राप्त होता है वहीं अनुग्रहीत को समय पर सहायता मिल जाने से संकट की विकरालता से मुक्त होने का सुख प्राप्त होता है। इससे दोनों पक्ष लाभान्वित एवं आनंदित होते हैं।
कृतज्ञता एक महान गुण है। कृतज्ञता का अर्थ है अपने प्रति की हुई श्रेष्ठ और उत्कृष्ट सहायता के लिए श्रद्धावान होकर दूसरे व्यक्ति के समक्ष सम्मान प्रदर्शन करना। हम अपने प्रति कभी भी और किसी भी रूप में की गई सहायता के लिए आभार प्रकट करते हैं और कहते हैं कि ‘हम आप के प्रति कृतज्ञ हैं, ऋणी हैं और इसके बदले हमें जब भी कभी अवसर आएगा, अवश्य ही सेवा करेंगे। कुछ लोग संकट काल में काम आने वाले महानुभावों के चिर ऋणी होने की अभिव्यक्ति द्वारा अपने कृतज्ञता संपन्न होने का परिचय देते हैं। कृतज्ञता एक सामान्य शिष्टाचार भी है। कृतज्ञ प्राणी अपने शिष्ट वचनों द्वारा कृपा करने वाले का आभार व्यक्त करता है।
वह जानता है कि उसकी रत्तीभर की उदासीनता उसे भविष्य में इस प्रकार की कृपा से वंचित कर सकती है।
भविष्य में कष्टमय परिस्थितियों में इसी प्रकार कृपालुओं का सहयोग मिलता रहे, इसलिए इस शिष्टाचार के माध्यम से वह अपने व्यक्तित्व का उज्जवल एवं मानवीय पक्ष समाज के सामने प्रस्तुत करने के साथ ही एक आदर्श एवं प्रेरक उदाहरण भी बनना चाहता है। यह शिष्टाचार उसे सम्मान में सम्मानित नागरिकों की श्रेणी में खड़ा कर देता है।
बात अगर हम मानवीय गुणों में कृतज्ञता को सर्वश्रेष्ठ गुण मानने की करे तो, मनुष्य के सभी गुणों में कृतज्ञता सबसे महान गुण ही नहीं ,बल्कि सैकड़ों गुणों की जननी भी है। कृतज्ञता का भाव रखने वाला मनुष्य वृक्ष की जड़ में कृतज्ञता रूपी जल डालता है जिससे, वही वृक्ष तरह तरह के नए-नए फूल – पत्तों से भर जाता है। धन्यवाद से जीवन में खुशियों की नई-नई सुगंध, नए-नए पुष्प और पत्ते स्वयं ही लगने लगते हैं। कृतज्ञता व्यक्ति की जिंदगी में खुशियां लेकर आती है। जरूरत के समय या विषम परिस्थिति , चुनौती के समय किसी के द्वारा की गई छोटी सी सहायता, या सेवा के लिए हृदय में उस व्यक्ति के प्रति आदर भाव रखना, और उसके लिए शुक्रिया अदा करना ही कृतज्ञता कहलाता है।
यूं तो शुक्रिया का शाब्दिक अर्थ आभार है। आभार के द्वारा हम बड़ी आसानी से अपने सन्मुख व्यक्ति को कृतज्ञता के भाव जाहिर कर अपना ,बना सकते हैं। कृतज्ञता दिव्य प्रकाश है। यह प्रकाश जहां होता है, वहां देवताओं का वास माना जाता है। कृतज्ञता दी हुई सहायता के प्रति आभार प्रकट करने का, श्रद्धा के अर्पण का भाव है। जो दिया है, हम उसके ऋणी हैं, इसकी अभिव्यक्ति ही कृतज्ञता है और अवसर आने पर उसे समुचित रूप से लौटा देना, इस गुण का मूलमंत्र है। इसी एक गुण के बल पर समाज और इंसान में एक सहज संबंध विकसित हो सकता है, भावना और संवेदना का जीवंत वातावरण निर्मित हो सकता है। कृतज्ञता एक पावन यज्ञ है।
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि कृतज्ञता एक संस्कार है धन्यवाद साधुवाद शुक्रिया आदि शब्द कृतज्ञता के सूचक शब्द मात्र ही नहीं अपितु हार्दिक आभार के भार से नमित सुकर्म होते हैं। कृतज्ञता संकटकाल में काम आने वाले महानुभावों के ऋणी होने की अभिव्यक्ति है। कृतज्ञता अपने व्यक्तित्व में रखना सम्मान की बात है।
— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया