कविता

धूप छांव

जिंदगी के रूप कई कहीं मिले धूप छांव
आती दुःख की धूप तो सुख की छांव भी अपार
आनी जानी हैं ये माया तुम हो या हो हम
कभी कभी हंसी के फुहारे कभी बहे गुम के आंसू
सुख में जो न बहके दुःख में टूटे न कोई
तो जीवन  बने सफल टूट न जाएं कोई
सुख सुविधा चाहे सब मिले जो नसीब में होई
सदा सुख तो होवे नहीं दुःख भी न हरदम होई
रब जी भी हैं दयावान किंतु कर्म फल ये होई
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।