कविता

खबरिए

वे बस्ती के खबरिए हैं

उन्हें सब पता है

किस से किस का टांका भिड़ा है

कौन छिप छिप कर किस से मिला है

पड़ोसन का बहु से

रात झगड़ा हुआ है

कौन आया रात दारू पी के

किस से कौन मिला रात आके

किसके यहां आने वाली खुशी है

कौन दुल्हनिया बनने जा रही है

पड़ोस के घर में क्या पक रहा है

क्या उसके घर में चल रहा है

उनको तो वह भी पता है

जो किसी की भी नहीं पता है

बस्ती के वह हैं खुफिया

क्या हो गया और

क्या होने वाला है

उनको सब कुछ पता है.

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020