कुण्डली/छंद

दस घनाक्षरियाँ मनहरण

1. राणा प्रतापऔर उनके वीर
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शौर्य के प्रचण्ड पिण्ड कहो मारतण्ड चण्ड,
तोड़ दिग्गजों की तुण्ड ठण्ड झेलने लगे ।
मुगलों की बगलों में दबे हुए बगुलों को,
चुगलों ने छेड़ा तो घमण्ड ठेलने लगे।
जीतने के जोश में न बैरियों को होश रहा ,
वीरता की भूमि पै ही दण्ड पेलने लगे ।
इधर लड़ाके वीर बाँके राणा जी के धीर ,
काट काट मुण्ड खण्ड खण्ड खेलने लगे ।।
2. हल्दीघाटी और खून तलाई
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लाल लाल माटी वाली घाटी लाल लाल हुई ,
शौर्य शक्ति चण्डिका सी भू का भाल हो गई ।
चेतक सवार राणा और वीर बाँकुरों को
खाटी हल्दी घाटी खुद जाटी ढाल हो गई।
चण्ड मुण्ड के समान बादशाही झुण्ड वाले,
बैरियों को चण्डी तलवार काल हो गयी ।
रही सही रक्त धार बही रण भूमि में तो ,
खून की तलाई पूरी लाल ताल हो गयी ।।
3. हल्दी घाटी युद्ध
रवि का प्रचण्ड रूप चण्ड हो चुकी थी धूप,
सूख गए नदी कूप नग्न आसमान था ।
आतताई सेना आई पड़ा जो सुनाई चला,
राई काई फाड़ता हरेक नव जवान था ।
एक ओर बादशाही एक ओर राणाशाही,
जंग जीत वाहवाही लूटने पे ध्यान था ।
खेलती कलाई देती तेग की दुहाई जहाँ,
खून की तलाई रक्त पायी मैदान था ।।
4
सेनापति राणा का हकीमखान सूरी जो कि,
विश्वसनीय वीर एक मुस्लिम पठान था ।
बादशाही सैनिकों पे काल जैसा टूट पड़ा,
बैरियों की जीभ पे सवार जंगी जान था ।
किन्तु किसी शत्रु की कटार का प्रहार हुआ,
गरदन गिरी तो तन लोहू से लुहान था ।
मुण्ड कटते ही रुण्ड उठा तेग ले के पिण्ड,
चीर देता मानो रक्त कुण्ड हिन्दुस्तान था ।
5
खच्च खच्च मुण्ड खचा खच्च रुण्ड खण्ड खण्ड,
मौत को भी नाच नचाता हुआ जवान था ।
तेग तलवार क्या कटार भाला तीर लटठ,
आदिवासियों का तूर्य ताने तापमान था ।
आज हल्दी घाटी युद्ध भूमि का बनी थी
द्वार -द्वार वीर राणा का प्रतापी पायदान था ।
दुश्मनों के दिलों बीच होने लगी धक्क धक्क,
फक्क फक्क फका फक्क फेफड़ों का गान था ।।
6
मेरी मातृभूमि मेरा मन मेवाड़ बन्धु,
बोलता हकीमखान सूरी वो पठान था ।
शीष कटवा दिया न छोड़ा ईमान धर्म,
अफगानी आन वाला पाक मुसलमान था ।
छोटे राज्य छीन छीन गुठली सी बीन बीन,
बादशाह होने का जो पालता गुमान था ।
उस आतताई से क्या तुलना शहीद की जो,
मातृ भूमि के लिए मरा वही महान था ।।
7
नाल ठुके चेतक की टाप का कमाल सुन,
टप्प टप्प टपा टप्प डोलता मचान था ।
धारदार तेग तलवार का लड़ाका वेग,
ठक्क ठक्क ठका ठक्क खोलता मियान था ।
एक एक वीर जान जान खेलता था किन्तु,
सक्क पक्क हका बक्क दोलता जहान था ।
चेतक सवार राणा भाले को घुसेड़ते तो,
भक्क भक्क भका भक्क बोलता मसान था ।
8
मैं तुम्हारे पाँवों बीच बैठ जाऊँ चुभने को,
रास्ते में ताल के सिंघाड़े बोलने लगे।
खूँदते खुरों से देख उड़ती धरा की धूल,
आओ आओ गाँव के अखाड़े बोलने लगे ।
कूदने की गिनती को गिनने में देर देख,
दरबारी दूर से पहाड़े बोलने लगे ।
चेतक की टापों की सुताल बद्ध टप्प टप्प,
सुन कर धूम धाँ नगाड़े बोलने लगे ।।
9
चेतक की नाल से ही हो गया कमाल मानो,
काल के कराल भाल पै नया निशान था ।
हथिनी सवार पे भी करता प्रहार अश्व,
अश्व था कि अश्व रूप कोई वरदान था ।
खाइयों से कूद कूद बैरियों को ढूँढ ढूँढ,
मारता दुलत्ती कभी मारता कसान था।
आप भी बताइयेगा राणाजी को रखो दूर,
अक्कबर महान था कि चेतक महान था ।।
10
राणा जी के चेतक ने  मालिक की रक्षा हेतु,
हल्दी घाटी के समीप दिया बलिदान था ।
नर से भी ज्यादा स्वामिभक्त पशु देव देख,
धरती तो रोई रोया भारी आसमान था ।
एक पशु जिस पर कविताएँ लिखी गईं,
एक शाह जिस पर भरा पीकदान था ।
मेरे मित्र तुलना न  हो सकेगी असमान,
कोई भी कहेगा प्यारे घोड़ा ही महान था ।।
— गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

गिरेन्द्र सिंह भदौरिया "प्राण"

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