कविता

अग्निवीर

अपने ही देश की सम्पत्ति को
बार बार क्यूं आग लगाते
इतना निकृष्ट कृत्य करके भी
क्यों तुम रत्ती भर नही लजाते ।।

कभी ट्रेन तो कभी रेलवे स्टेशन
कभी बसों को नुकसान पहुंचाते
कैसे हो तुम आंदोलनकारी, जो
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चलाते

सेना में भर्ती की आश लगाकर
राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाम लगाते
अपनों को ही नुकसान पहुंचाकर
बेशर्मी की हदें पार कर जाते।।

हिंसा के रास्ते से कुछ न मिलेगा
तुम्हारा ही मान सम्मान गिरेगा
उपद्रवी तत्व हो गये जो शामिल
समाज से भी तिरस्कार मिले गा।।

घर परिवार की होगी फजीहत
ख्याति पर भी बट्टा लग जाएगा
मकसद से अपने भटकों न यारों
लक्षय हाथ से फिसल जाएगा ।।

देश में गर बढ़ गयी अराजकता
किसी के कुछ नहि , हाथ आएगा
मंहगाई सर चढ़कर नाचेगी
सारा भविष्य धरा रह जाएगा ।।

जीवन भी तो एक अग्निपथ ही है
धैर्य और साहस से कदम बढ़ाएं
बस मन में रखें दृढ़ इच्छाशक्ति
सफलता पाएं, अग्निवीर बन जाएं

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई