गीत/नवगीत

जलता है देश हमारा

जलता जाता देश,चुप्प हैं देखो सारे।
नौजवान को समझाकर के,सब ही हारे।।
नीति,नियति की बातें होतीं,हिंसा फैली।
देखो तो सबकी ही चादर दिखती मैली।।
शासक दोषी,नौजवान भी,कुछ तो देख तमाशे।
दूर बैठकर चुप हो खाते,शक्कर पगे बताशे।।
देशभक्ति की बातें करते,पर लाते अँधियारे।
जलता जाता देश,चुप्प हैं देखो सारे।।
आग बुझेगी कैसे अब यह,कोई तो बतलाये।
नीतिनियंता,पालनकर्ता,कोई राह सुझाये।।
आँखों से आँसू बहते हैं,लखकर यह बर्बादी।
फूँक रही है निज सम्पत्ती,नौजवान आबादी।।
अंधकार में दीप बंधुवर,कौन जलाएगा।
कौन भारती के बेटे का फर्ज़ निभाएगा।।
देशविरोधी लोगों के तो,देखो वारे-न्यारे।
जलता जाता देश,चुप्प हैं देखो सारे।।
मारकाट है,हिंसा,मातम,अवसादों ने घेरा।
उजियारा तो दूर हो गया,छाया घोर अँधेरा।।
विध्वंसक सबके मन हैं अब,भटक रहे सब।
अपने ही सारे नित हमको,खटक रहे अब।।
सबको अपना हित बस दिखता,पत्थर सारे।
आज सिसकती महफिल में बस,हैं अँधियारे।।
मंगलगान नहीं होता अब,गम बस द्वारे।
जलता जाता देश,चुप्प हैं देखो सारे।।
— प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com