सामाजिक

अपने डॉक्टर

आज डॉक्टर्स  डे है,आज के दिन यदि एक शल्यचिकित्सक को याद नहीं करेंगे तो अपने इतिहास के प्रति अन्याय हो जायेगा।
     अपने चारों वेदों के बारे में हम जानते है , यानि कि नाम तो सुना ही हैं हम ने।अथर्ववेद या ऋग्वेद में से किसी एक का एक हिस्सा माना जाता है।
 ऋषि सुश्रुत का जन्म ऋषि विश्वामित्र के कुल में हुआ था।वैदक ,आयुर्वेद उनके कुल का व्यवसाय ही था।उनका जन्म काशी में हुआ था और बनारस विश्व विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की थी।वे भी वही व्यवसाय करते थे किंतु उन्हों  शल्य चिकित्सा में महारत हांसिल की थी।उनके शिष्य भी काफी थे ,उनको मोम के पुतले बना कर शरीर विज्ञान सिखाते थे।नदियों में शब बहा कर स्वर्ग प्राप्त होने की मान्यता बहुत ही पुरानी हैं हिंदू धर्म में।तो वे यही शबों को नदी से निकाल कर उन पर अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा का ज्ञान देते थे।उन्होंने अपने शल्यचित्सा शास्त्र  से उन्हों ने बहुत सारे सिपाहियों के अंगों को जोड़ा,प्लास्टिक सर्जरी के जन्मदाता हैं वो,एक सिपाही कटी नाक तक जोड़ दी थी।पीड़ा हरने के लिए सोमरस पीलाते थे ताकि शल्यक्रिया करते समय दर्द कम हो।
 उनके पास १२५ शाल्यचिकित्सा के साधन थे जिसका प्रयोग करके वो उपचार करते थे।जिस में चाकु, सुइयां,चिमटे जैसे १२५ साधन थे।
 उनके बारे में दो बाते बहुत प्रचलित है,एक तो शब को छूने की वजह से उनको गांव के बाहर रहना पड़ता था क्योंकि ब्राह्मण हो के शब को हाथ लगाते थे,जो वार्ज्य था।दूसरा शल्यक्रिया के बाद चमड़ी में टांके लेने के लिए बड़े वाले काले चींटो का प्रयोग करते थे।उनको पाल के रखते थे, जहां उनको टांका लगाना होता था वहा चिंटा लगाते थे,वह वहां चमड़ी को पकड़ लेता था,उसके डंक चमड़ी के दोनों सिरों को पकड़ लेते थे,वो डंक छूटते नहीं है जब तक छुड़वाया न जाए।
प्रसूति,मोतियाबिंद,कृत्रिम अंग लगाना,पथरी का इलाज़, मुश्किल  किस्म प्लास्टिक सर्जरी २६०० साल पहले किया करते थे,जब की आधुनिक विज्ञान  में सर्जरी का ४०० सालों के  पहले ही आविष्कार हुआ है। जब की वे हजारों सालों पहले से ये सब करते थे।
 अपने देश का तो पता नहीं किंतु ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न स्थित रॉयल ऑस्ट्रेलिया कॉलेज ऑफ सर्जेंस में ऋषि सुश्रुत की प्रतिमा लगाई हुई है। वहां के डॉक्टर्स उनके ज्ञान का अध्ययन कर उन्हे सम्मान देते है।
 ऐसे थे अपने ऋषि मुनि,जो आधुनिक विज्ञान की टक्कर का ज्ञान रखते थे।
 नेपाल के संग्रहालय में सुश्रुत संहिता की मूल कॉपी उपलब्ध हैं,बाकी तो अनुवाद तो सा सभी जगह उपलब्ध है।
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।