कविता

साथ हमारा

जब नहीं थे वो नहीं था जिक्र
जब मिले तो जैसे सोएं से थे रहें जाग
जब नहीं है उनको हमारी फिक्र,
हम क्यों पीछे उनके रहें भाग
 छोटी छोटी सी हर एक बात पर,
मुंह उनका ही बस क्यों रहे ताक
जीने के रास्ते हैं बहुत ज्यादा
एक ही के पीछे क्यों जाएं भागा
लगी रहती हैं दिल से दिल्लगी
शायद इसी को मानते हैं दीवानगी
लगाकर दिल जो भुला दे हमें
हर पल करके याद क्या मिला हमें
जिंदगी चार दिनों की ही हो भले
उन्ही दिनों में सपने भी तो बहुत पलें
जिंदगी के बाद भी करें याद हमें
अच्छे कर्मों का फल हैं मिलें जो हमें
दिन और दुनियां की सोचों गर तुम
पाएंगे वहीजो पौधा लगाओ तुम
सच और जूठ की दुनियां में हम
सच बोलेंगे उतने ही सुख पाएंगे हम
— जयश्री बिरमि

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।