बाल कविताशिशुगीत

माखन चोर

मां तू मुझे मक्खन खिलाती है,
मेरे सखा न माखन चख पाते,
उनके घर का सारा माखन,
कारिंदे कंस के ले जाते.
मैं इसलिए मक्खन चुराता हूं,
मेरे सखा भी माखन खा पाएं,
पर सबसे पहले मैं खाता,
मेरे सखा न दोषी कहलाएं.
“हेरत-हेरत पथ हार गईं,
आलि माखन चोर नहिं आयो”,
ये कहती हैं सारी गोपियां,
जा दिन वांको माखन नहिं खायो.
तब कहतीं हैं माखनचोर हूं मैं,
अब तू ही बता मां क्या बोलूं?
उनकी ऐसी बातें सुन-सुन,
क्या चुपके-से उनकी पोल खोलूं?
वे अपने लालों को माखन दें,
मैं माखन-चोरी छोड़ूंगा,
मैं कंस के जुल्मों से अपने,
नंदगांव को पिसने नहिं दूंगा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244