भाषा-साहित्य

हिंदी में लिखने और पढ़ने में गर्व होना चाहिए

एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है। बहुत सरल,  सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है जो हमारे पारम्‍परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्‍यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिंदी भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल अन्य इक्कीस भाषाओं के साथ हिंदी का एक विशेष स्थान है। भाषा का विकास उसके साहित्य पर निर्भर करता है। आज के तकनीकी के युग में वि‍ज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी हिंदी में काम को बढ़ावा देना चाहिए ताकि देश की प्रगति में ग्रामीण जनसंख्‍या सहित सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके। इसके लिए यह अनिवार्य है कि हिन्‍दी और अन्‍य भारतीय भाषाओं में तकनीकी ज्ञान से संबंधित साहित्‍य का सरल अनुवाद किया जाए। इसके लिए राजभाषा विभाग ने सरल हिंदी शब्दावली भी तैयार की है। राजभाषा विभाग द्वारा राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन योजना के द्वारा हिंदी में ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों के लेखन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे हमारे विद्यार्थियों को ज्ञान-विज्ञान संबंधी पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध होंगी। हिन्दी भाषा के माध्यम से शिक्षित युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध हो सकें, इस दिशा में निरंतर प्रयास भी जरूरी है।

दुनिया तेजी से बदल रही है। इसी तरह भाषाओं का स्वरूप भी बदल रहा है। बीते कुछ समय से हिंदी का स्वरूप भी तेजी से बदला है। चाहे हिंदी साहित्य हो या आम बोलचाल की भाषा, अब नई वाली हिंदी का चलन आ गया है। हिंदी भाषा में ऐसी बहुत सी चीज़ लिखी और पढ़ी जा रही हैं जिनके बारे में हमारे साहित्य में कभी भी कुछ नहीं था। इसमें औरतों से जुड़े मुद्दों पर औरतें खुद लिख रही हैं, मेंटल हेल्थ से जुड़े मुद्दों पर हिंदी में लिखा जा रहा है और सेक्स और रिश्तों के बारे में भी नए रिसर्च और तजुर्बे लिखे जा रहे हैं। लेकिन कई बार जब आप किसी ऐसे मुद्दे पर लिखते हैं, जहां हिंदी में पहले कभी नहीं लिखा गया है, शब्दों का एक अकाल सा महसूस होता है। इसके लिए अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है। जो शुद्ध हिंदी पसंद करने वाले लोग हैं उन्हें हिंदी में इंग्लिश का प्रयोग रास नहीं आता। लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि अगर भाषाओं को आपस में मिलाजुला कर काम नहीं किया गया तो कोई भी भाषा बहुत समय तक जीवित नहीं रह पाएगी। इसीलिए हिंदी वालों को भी इस बदलती हिंदी के साथ बदलना होगा और शुद्ध और प्योर की इच्छा को दरकिनार करते हुए हिंदी के इस यंग और तेजी से बदलते स्वरूप को स्वीकारना होगा।

हिंदी में कहानियां लिखने और वो भी ख़ास कर बच्चों के लिए कहानियाँ लिखने की ख़ास जरूरत इसलिए है कि तकनीक के सहारे अंग्रेजी भाषा, हिंदी भाषा से हमेशा दो कदम आगे दिखती है और यदि अभी भी हिंदी को सही सम्मान नहीं मिलेगा तो यह स्थिति और बदतर हो जाएगी। वास्तव में कहानियाँ हमारे जीवन का अभिन्न अंग रही हैं। न केवल हमारे जीवन का बल्कि मानवता का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमेशा से मनुष्यों ने एक-दूसरे को कहानियां सुनाई हैं। बच्चों के लिए इन कहानियों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पारित किया गया है। बच्चों के लिए कहानियाँ उन्हें अच्छी आदतें और मूल्य सिखाने का एक तरीका है। बच्चों के लिए हिन्दी कहानियां बच्चों को पात्रों से जोड़ती हैं और इस प्रकार उन्हें अपनी भावनाओं को महसूस करने में सक्षम बनाती हैं। जैसे-जैसे बच्चे बच्चों की कहानियों को सुनने में रुचि लेते हैं उन्हें उन पात्रों, नैतिकताओं और उनमें प्रयुक्त शब्दों को याद करते हैं। यह उनके संस्मरण कौशल को परिष्कृत करता है। कोई भी छोटे बच्चों की कहानी न केवल बच्चों को लुभाती है बल्कि बड़ो के द्वारा भी पसंद की जाती है। अपने खाली समय में, कई युवा और वयस्क बच्चों की लघु कथाएँ पढ़ते हैं और अपने बचपन को याद करते हैं।

1949 में भारत की संविधान सभा ने हिंदी भाषा की देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया था। भारत के संविधान ने देवनागरी लिपि में लिखी हुई हिंदी भाषा को 1950 में अनुच्छेद 343 के तहत देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया था। इसके साथ-साथ भारत सरकार के स्तर पर अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओँ का औपचारिक रूप से प्रयोग किया जाने लगा। साल 1949 में 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा था। हिंदी भाषा का सम्मान करना हर भारतीय का कर्तव्य होता है। हिंदी दिवस भारत में हिंदी का विकास करने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। आज के समय में करोड़ों लोग हिंदी भाषा में कंप्यूटर का प्रयोग कर रहे हैं जी हिंदी के वर्चस्व के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। आज का दौर डिजिटलाईजेशन का है जिसमें भारत के गांवों को भी इससे जोड़ा जा रहा है इंटरनेट को हर कोने तक पहुंचने की पूरी कोशिश की जा रही है। इन सब के लिए हिंदी माध्यम का जरिया पूरी तरह बन गया सके इसके प्रयास लगतार जारी हैं। इन कदमों को उठाने में काफी सफलता भी हासिल हुई है। हिंदी हमारी पहचान है और इसे छिपाने की नहीं अलबत्ता उज्जागर करने की आवश्यकता है। आगामी हिंदी दिवस पर हम अपने मातृभाषा के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए दिखें, इसके प्रयास अभी से शुरू कर देने चाहिए। देश आज़ादी का अमृत उत्सव मना रहा है और अपनी मातृ भाषा के प्रति यही सच्ची सौगात होगी।

— सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com