बाल कविता

चली रेल, छुक-छुक, छुक-छुक!

छुक-छुक, छुक-छुक,

चली रेल, छुक-छुक दौड़ेंगीं,
प्रिय सखा हमराह होंगे,
मीठी-मीठी बातें होगी।।
हंसी-ठिठोली, मौज मस्ती,
रंग बहार लाएगी दोस्ती,
जीवन सतरंगा हो जाएगा,
प्रेम-रस धार बरसेगी।।
कोई आये, कोई जाये,
पेड़-पौधे, वन मनभाये,
ऊंचे परबत, गहरी खाई,
करतब करते बंदर तमाशाई।।
ले लो मूंगफली नमकीन,
गरम वड़ा-पाव लजीज,
चना-जोर हैं चटपटा स्वाद,
चल दी रेल, चढ़ो उस्ताद।।
हमसफर मित्र खुश हैँ सारे,
मिलेंगे और बिछड़ेंगे भी प्यारे,
जीवन धन्य हो, सत्पथ चलो,
 कर्तव्य-कर्म से कभी न भटको।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८