कविता

वक्त

इस भागदौड़ की जिंदगी में किसी के पास वक्त नहीं ,
कुछ अपनों के लिए समय निकालें ,
वरना ,
जिंदगी यूँ ही निकलती जा रही ,
हम अपनों के साथ वक्त नहीं बिता पा रहे हैं ,
परिवार के साथ खुशी से जिएं,
जो गुजर जा रहा है , वह न फिर आनेवाला ,
उसे आंँखों में कैद कर लें ,
क्या खोया , क्या पाया ,
इसका हिसाब करने का वक्त नहीं ,
अपना कीमती वक्त निकाल ,
सुकून के पल उनके साथ बिताएं ,
जिनकी आंँखों ने आपके लिए ,
देखे हैं सपने हजार ,
चेतना  का वक्त प्रकाश के साथ ,
मैं जीती हूंँ , अपनी जिंदगी!अपनों के साथ ,
आइए , कुछ वक्त निकाल कर ,
आप हमारे साथ सुकून के पल बिताएं ,
वरना, वक्त निकल जाएगा ,
फिर हम कहेंगे –
इस भागदौड़ की जिंदगी में ,
हमने जिंदगी ! जिया ही नहीं ।
— चेतना प्रकाश ‘चितेरी’ 

चेतना सिंह 'चितेरी'

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