कविता

पनघट

खनकती चुड़ियों से सज गई है
सुबह शाम गॉव की   पनघट
घुँघट में चल पड़ी दुल्हन
बजी पायल की है रूनझुन

कलश माथे पे ले सॉवर गौरी
हवा में आँचल   मुस्कुराती है
तरू पे बैठी कोयलिया   हमें
प्रेम की एहसास कराती है

राह से जब गुजरती है दुल्हन
जवां दिल रोज  धड़कता है
एक नजर दीदार पाने को
सुबह शाम रोज सॅवरता है

कभी मुस्कुरा कर तुम कहना
हमें भी तुमसे  मोहब्बत   था
अब तेरा बस गया है घर
हमें भी तुमसे कभी हसरत था

तुम्हें कैसे मैं भूल जाऊँ सनम
तेरी लचकती चाल दुश्मन  है
जीते हैं हम तन्हा  अँधेरे में
ये मन पागल सा हमदम है

कह रही है ये बहाव  सरिता की
दुःख सुख का जीवन अंजूमन है
कभी हँसना कभी  गम में रोना
यही तो कूदरत की     जीवन है

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088