लघुकथा

लघुकथा : कद्दू-चनादाल की सब्जी

क्षमा अपनी पढ़ाई कम्पलिट कर शहर से अपने गाँव आई। पूरे घर भर को उसका बेसब्री से इंतजार था। बड़ा अच्छा लगा सबको। हर तरह की बातें हुई। सब बहुत खुश थे। स्नेह व आत्मीयता क्षमा पर बरस रही थी। सभी अपने-अपने हाथों से रोज उसे कुछ न कुछ बना कर खिलाने लगे।
          आज क्षमा का सबके लिए खाना बनाने का मन हुआ। पहले तो दाल-चावल बनाने की इच्छा थी उसकी। फिर अचानक मन हुआ, दाल की जगह सब्जी बनाने का। सब्जी चयन किया उसने- कद्दू के संग चना दाल। कद्दू को साइज से काट डाला। एक कटोरी में अलग से चना दाल भीगा डाली। फिर पूरी तन्मयता से उसने सबके लिए खाना बनाया। क्षमा बहुत खुश थी एक नई सब्जी बनाते हुए। सबकी नजर क्षमा पर थी। सबको उसे खाना बनाते देख अच्छा लग रहा था। खाना भी बन गया। स्वयं क्षमा ने सबको परोसा भात और कद्दू संग चना दाल की सब्जी।
          दादा-दादी, मम्मी-पापा, चाचा-चाची, भैया-दीदी सब कद्दू-चनादाल की सब्जी पहली बार खा रहे थे। खाते वक्त वे एक-दूसरे को देखने लगे। सबकी एक ही आवाज थी- ‘ वाह बिटिया….! रानी, क्या सब्जी बनाई हो…! मजा आ गया री छोटी…! मैं तो फर्स्ट टाईम खा रहा हूँ फिर भी…! वैरी डिलिसियस…! एक्सिलेंट रे गुड़िया…! आज मैंने खूब खाना खाया क्षम्मो…! ओ….म् ! “
           सबके खाने के बाद क्षमा बैठी खाना खाने के लिए। वह दो कौर से ज्यादा नहीं खा पायी। तभी घरवालों को अपनी ओर मुस्कुराते हुए देख कर क्षमा सब समझ गयी। उसे रोना आ रहा था, पर खिलखिला कर हँस डाली। बोली- ” जरा भी अच्छी नहीं लगी है ओ सब्जी…फिर भी…आप लोग….!! “
— टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’

टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"

शिक्षक , शासकीय माध्यमिक शाला -- सुरडोंगर. जिला- बालोद (छ.ग.)491230 मोबाईल -- 9753269282.