कविता

रेत पे फिसलती राह

जब भी राहों पे मैं चलता हूँ
अपनों का ही ताना सहता हूँ
हिम्मत फिर भी मैं कहाँ हारा
रेत पे फिसलती जिन्दगी हमारा

विघ्न बाधाओं से कभी ना घबराया
हर मुसिबत को मैं गले से  लगाया
दुश्मन को भी मैंने जीवन में पाया
फिर भी मंजिल दूर हमें दिखाया

शतरंज ने धोखा की बिछाई है बिसात
किस्मत कर रही घात पे हमें      घात
दिन रात का मिहनत कब रंग लायेगा
मुकाम तक हमें कब लेकर जायेगा

जिस जिसको जीवन में समझा अपना
उसने ही उजाड़ दी मेरी सब    सपना
जिस पथ पर था कॉटा वो बिछवाया
हमने भी घायल हो उसे गले लगाया

पर सूरज को डूबना था  अस्ताचल
मेरा मन  सूरज कर गया हमें पागल
तेरी नजर फिर क्यूं है तूँ         रूठा
क्यो भगवन तेरी भक्ति हुई   झूठा

जीवन में मैं फिर भी हार ना मॉनूगा
किस्मत से लड़ कर सफलता पाऊँगा
कर ले तुँ हम पर जो भी मनमानी
एक दिन सफल होगी मेरी भी कहानी

—  उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088