बाल कविता

बाल कविता – बादल

रुई से नरम बादल कितने अच्छे हैं ।
धुआं से सफेद बादल बने लच्छे हैं ।।
उमड़ – घुमड़ नभ में उड़ते जाते हैं ।
कभी गरजते रहते, कभी बरस जाते हैं ।।
काली -काली घटा अंधेरी बनाकर डराते हैं ।
बादल प्यासी धरती की प्यास बुझाते हैं ।।
कभी रात को तो कभी दिन को बरसते हैं ।
बादल सुबह-शाम जमकर बरसते हैं ।।
बादल अपनी मनमर्जी के मालिक होते हैं ।
कहीं सूखा तो कहीं मूसलाधार बनके बरसते हैं ।।
रुई से नरम बादल कितने अच्छे हैं ।
धुआं से सफेद बादल बने लच्छे हैं ।।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111