गीतिका/ग़ज़ल

होली गीतिका

होली खेलो कान्हा ऐसी, अंग अंग रंग जाये,
भीगे चुनरी मोरी ऐसी, रंग न छूटन पाये।
सतरंगी रंगों से खेलो, तन मन दोनों रंग दो,
श्याम रंग में रंग दो मोको, दूजा रंग न भाये।
कहाँ छिपे हो गिरधर नागर, सखियाँ ढूँढ रही,
तरस रही अँखिया गोपिन की, किस ठौर तुम धाये।
गोकुल मथुरा रंगहीन है, राह तके तुम्हारी,
कुंज गली में मिलन का वादा, कान्हा जल्दी आये।

— अ कीर्ति वर्द्धन