कविता

दोहों में पर्यावरण

बिगड़ते पर्यावरण पर, उठ रहे हैं सवाल। मानव की खुदगर्जी से, कुदरत है बेहाल।। १ औद्योगिकरण क्रांति से, होय जग में विनाश। गंगा माँ मैली हुई, क्या यही है विकास? २ सावन अब बरसे नहीं, तपे नहीं है जेठ। किसानी त्रासदियाँ बन, भरे नहीं है पेट।। ३ औद्योगिक अवशिष्ट बह, नदियां होय खराब। हुआ है […]