ग़ज़ल – मुकम्मल कोई नहीं
सब को है गुमां, मगर, मुकम्मल कोई नहीं। सूने पडे पनघट, चहलपहल कोई नहीं। दूर तक कोई शजर नहीं, कोई
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Read Moreखिले टेसु जैसे कि षोडशी की तरुणाई सी। रूत हुई महुआ सी, जिंदगी फिरे बौराई सी। रितुराज के स्वागत में
Read Moreमन की व्याकुलता का व्यापार किया जाए,सपनों के पनघट पे। जीवन में फिर चेतना का संचार किया जाए,सपनों के पनघट
Read Moreन रुठो बेवजह, थोड़ी सी जहमत कर लो। जाने कल क्या हो, के आओ मौहब्बत कर लो। ये भी एक
Read Moreकभी समन्दर, तो कभी साहिल हम हुए। कभी धडकन, तो कभी दिल हम हुए। इतनी खता है कि सच को
Read Moreकाश के सपनों के गांव में होतीं पगडण्डीयाँ। पांव पांव चलते और पा लेते खुशीयाँ। पर्वत पर्वत फूल खिलाते होते
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