धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

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मनुष्य जीवन केवल धन व सुख-सुविधायें अर्जित करने के लिये नहीं है

ओ३म् विश्व में इस समय मनुष्यों की जनसंख्या 7 अरब से कुछ अधिक मानी जाती है। सभी मनुष्य शारीरिक बनावट

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सत्यार्थप्रकाश अविद्या दूर कर मनुष्य को सच्चा विद्वान बनता है

ओ३म् सत्यार्थप्रकाश आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी का लिखा हुआ ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ पहली बार सन् 1874

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वेदों में अग्निहोत्र का विधान इसका ईश्वरप्रोक्त होने का प्रमाण

ओ३म् वेदों का आविर्भाव सृष्टि के आरम्भ में हुआ था। अन्य सभी मत-मतान्तर विगत लगभग 2500 वर्ष व उसके बाद

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विश्व के सभी मत-मतान्तरों के लिये ग्राह्य ऋषि दयानन्द प्रदत्त आर्यसमाज के प्रथम तीन नियम

ओ३म् महर्षि दयानन्द सृष्टि की आदि में परमात्मा से उत्पन्न चार वेदों के उच्च कोटि के विद्वान थे। ऋषि दयानन्द

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विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना भारत की देन हैः पीयूष शास्त्री

ओ३म् आर्यसमाज सुभाषनगर-देहरादून के वार्षिकोत्सव के समापन समारोह में अपने सम्बोधन में आर्य विद्वान पं0 पीयूष शास्त्री ने कहा कि

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हम ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के ऋणी हैं

ओ३म् ईश्वर का सत्यस्वरूप व गुण-कर्म-स्वभाव से परिचित कराने के लिये वैदिक धर्मी सभी बन्धुओं पर ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज

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रामनवमी संसार के एक प्राचीन आदर्श राजा राम से जुड़ा पावन पर्व है

ओ३म् भारत का सौभाग्य है कि इस देश की धरती पर सृष्टि के आरम्भ में सर्वव्यापक ईश्वर से चार ऋषियों

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वैदिक धर्म एवं संस्कृति के लिये समर्पित विद्वान पं. चमूपति जी

वेद संसार की सबसे प्राचीन पुस्तक है। वेदों से ही वैदिक धर्म एवं संस्कृति का उद्भव व प्रचलन हुआ है।

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