ब्लॉग/परिचर्चासामाजिक

अपने जीवन को बदलिए, सिर्फ़ एक दिन में

इन्सान खु़शी, कामयाबी और सेहत चाहता है। वह अपने सम्बंधों में प्रेम और अपने जीवन में विकास चाहता है और यह सब शान्ति के समानुपाती है। इन्सान जितना ज़्यादा शान्ति से भरपूर होगा, उतना ही ज़्यादा वह ख़ुशी, कामयाबी, सेहत, प्रेम और विकास से भरा हुआ होगा। शान्ति हर इन्सान की सबसे बड़ी बुनियादी ज़रूरत है। अगर यह नहीं है तो फिर किसी चीज़ का कोई मूल्य नहीं है।
अब सवाल यह है कि शान्ति कैसे मिले?
जवाब उतना ही आसान है। शान्ति पाना सबसे ज़्यादा आसान है। इस प्रकृति की रचना ही ऐसी है कि जो चीज़ जितनी ज़्यादा अहम है, वह उतनी ही ज़्यादा आसानी से मिल जाती है। शान्ति के लिए आपकी चाहत ही काफ़ी है। जब आप किसी चीज़ को दिल से, पूरी शिद्दत से चाहते हैं तो वह ख़ुद ही आपकी तरफ़ खिंची चली आती है।
आपको शान्ति चाहिए?
बस, आप इरादा कीजिए कि आप शान्त हैं। लीजिए, आप शान्त हो गए। अब आप अपनी शान्ति को भंग करने वाला, उसे नुक्सान पहुंचाने वाला कोई काम न करें। आपकी शान्ति बनी रहेगी। आप सिर्फ़ 24 घंटे शान्ति के इस भाव के साथ जीने की कोशिश कीजिए। आपके जीने का अन्दाज़ ही बदल जाएगा। आपके बीवी-बच्चे, पड़ोसी, रिश्तेदार और दोस्त आपसे रोज़ाना की तरह बर्ताव करेंगे लेकिन सिर्फ़ चन्द रोज़। आप उनकी बातों को सुनें लेकिन आप हर हाल में उन्हें शान्ति भरी प्रतिक्रिया ही दें। आपके मन में पुरानी यादें यानि भूतकाल की घटनाओं के भूत बड़ा हंगामा मचाएंगे लेकिन आप उन्हें कोई रिएक्शन मत देना। वे भी शांत होते चले जाएंगे।
आप हर समय अपना संकल्प याद रखें कि आप शान्त हैं। अगर आप मानते हैं कि आप शान्त हैं तो फिर आप शान्त हैं।
इस दुनिया में आपके मानने की बहुत इंपोर्टेन्स है, यहां तक कि आपके कहने की भी। आप थोड़ी थोड़ी देर बाद बार बार कहते भी रहें कि आप शांत हैं।
वैसे भी आप पाएंगे कि जीवन में अशान्त होने की कोई हक़ीक़ी वजह मौजूद नहीं है।
जीवन ईश्वर का वरदान है, एक बड़ी नेमत और उपहार है लेकिन ज़्यादातर लोग यह नहीं जानते, यही लोग श्रापित हैं। इन लोगों ने जीवन को एक सज़ा के रूप में लिया और वह इनके लिए सज़ा बन गया।
जीवन ईश्वर का चमत्कार है लेकिन श्रापित लोग यह चमत्कार देखने से वंचित ही रह गये और अंधे ठहरे। जब चमत्कार देखा ही नहीं तो किसी को बताते क्या?, ये गूंगे सिद्ध हुए। कोई इन्हें बता भी दे तो ये उसकी सुनते नहीं हैं, बहरे बन जाते हैं। इनके लिए इनकी अपनी वासनाएं ही प्रधान हैं। ईश्वर ने इन्हें जीवन दिया, मन-बुद्धि-आत्मा और शरीर दिया, इन्हें आंख, कान और ज़बान दी और वह सब दिया जो कि एक अच्छा और संपन्न जीवन जीने के लिए इंसान को दरकार है। यह सब ईश्वर की देन है और यह सब उसने इंसान को उसके किन्हीं कर्मों के बदले नहीं दिया है बल्कि केवल अपनी कृपा से, महज़ अपनी रहमत से दिया है।
यूनिवर्स की अरबों-खरबों आकाशगंगाएं और उनके सितारे, ग्रह और उपग्रह सब अपने अपने कक्ष में घूम रहे हैं। हमारा सौर मंडल भी घूम रहा है। इस यूनिवर्स का एक एक एटम चक्कर काट रहा है। हर चीज़ चल रही है और ऐसे चल रही है कि उसका लाभ धरती पर रहने वाले इन्सान को मिल रहा है। हर चीज़ इन्सान की लाइफ़ को सपोर्ट कर रही है। इन्सान के सारे नेक अमल मिल कर भी इतने बड़े नहीं होते कि उनके बदले में इस कायनात का एक एक एटम उसकी सेवा करे। बड़े बड़े ग्रह और आकाशगंगाएं उसके लिए अरबों साल चक्कर लगाती रहें।
हर ग्रह पर बारिश नहीं होती और जिस जिस ग्रह पर बारिश होती है तो अलग अलग तरह के एसिड की बारिश होती है। दूर तक फैली हुई जिस कायनात में हर तरफ़ तेज़ाब बरस रहा हो, वहीं उनके दरम्यान सिर्फ़ इस ज़मीन पर पानी की बारिश होती है। यह केवल उस ईश्वर की कृपा है, अल्लाह की रहमत है।
करोड़ों साल इस ज़मीन पर पानी बरसता रहा और जीवन पनपता रहा। यहां तक कि यह ज़मीन इन्सान के रहने के लायक़ बन गई। ज़मीन को अपने रहने लायक़ इन्सान ने ख़ुद नहीं बनाया है बल्कि यह उसे पहले से ही तैयार मिली है। इसमें उसकी ज़रूरत की हर चीज़ मौजूद है। यह सब ईश्वर अल्लाह के उपहार हैं, जो कि उसने इन्सान को दिए हैं और केवल अपनी कृपा से दिए हैं।
इन्सान को चाहिए कि वह अपनी पैदाईश को याद करे कि कैसे एक उछलती हुई बूंद गर्भाशय में जाकर एक के बाद एक कई रूप बदलती रही। मां-बाप में से कोई नहीं जानता था कि कैसे बन रहा है और क्या बन रहा है, लड़का बन रहा है कि लड़की बन रहा है? लेकिन फिर भी भ्रूण का विकास होता रहा और फिर एक मासूम बच्चा इस दुनिया में आया। बच्चे इस दुनिया में आते रहे, आते रहे यहां तक कि आप और हम भी इस दुनिया में आ गए।
बच्चा अपने आपे में ख़ुश होता है। वह हाथ पैर चलाता है, मुस्कुराता है, किलकारियां मारता है। जब तक बच्चा गीला न हो जाए या उसे भूख न लगने लगे तब तक वह यही सब करता है। वह ख़ुलकर जीता है। वह खुलकर सांस लेता है। आप देखेंगे कि सांस लेते वक्त उसका पेट हरकत करता है। उसका सांस उसकी नाभि तक तरंग पैदा करता है। यह इन्सान का स्वर्गिक स्वरूप है। इन्सान अपने बचपन को याद कर पाए तो वह उस आनंद, उस कैफ़ और मस्ती को याद कर सकता है जो कि उसे तब हासिल थी।
यह बच्चा बड़ा होता रहा और वह हंसना, मुस्कुराना और गहरे सांस लेना सब कुछ भूलता चला गया। यह सब गया तो उसकी ज़िन्दगी में दुख-दर्द आ गया, उसके दिल पर घुटन और निराशा छा गई। गांव-गांव और शहर-शहर मुर्दनी छा गई। वह जीना भूल गया।
भूलने वाले का नाम ही इन्सान है। वह ख़ुद को भूला तो फिर ख़ुदा को भी भूलता चला गया। वह स्वर्ग और जन्नत को भूला तो उसे हर तरफ़ से नर्क ने, जहन्नम ने घेर लिया है। यह फ़ैक्स का ज़माना है। असल पेपर अपनी जगह रहता है लेकिन उसका मैटर भेज दिया जाता है। ऐसे ही स्वर्ग और नर्क, जन्नत और जहन्नम की कैफ़ियतें भी इन्सान के दिल पर असर डालती रहती हैं। हर आदमी मरने से पहले आज ही, इसी दुनिया में ख़ुद को चेक कर सकता है कि वह अपने दिल में शांति, प्रेम और आनंद महसूस कर रहा है या फिर दुख-दर्द, घुटन और निराशा?
शांति, प्रेम और आनंद स्वर्ग की तरंगे हैं जबकि घुटन, दर्द और निराशा नर्क की। किसी के दिल को स्वर्ग की तरंगे मस्त किए रहती हैं तो किसी के दिल को नर्क की तरंगे उद्वेलित करती रहती हैं। अक्सर लोग दोनों तरह की कैफ़ियतों से गुज़रते रहते हैं लेकिन फिर भी कहते हैं कि मैं स्वर्ग-नर्क नहीं मानता।
ऐसा आदमी तरंगों को तो मानता है लेकिन उनके उद्गम को, उनके सोर्स को नहीं मानता। हरेक तरंग का एक उद्गम है और वही उसके लौटने की जगह भी है। विचार शक्ति से आदमी उन चीज़ों को भी देख लेता है, जिन्हें आंख से देखना मुमकिन नहीं है। अक्सर आदमी अपनी आंखों से एक चीज़ देखते हैं लेकिन वे उस पर विचार नहीं करते। इसीलिए वे उससे कोई फ़ायदा नहीं उठा पाते। ऐसे लोग अक्सर बेवजह बहस करते हैं। वे उन लोगों में से हैं जो कि चारों तरफ़ दुख-दर्द, घुटन और निराशा में जी रहे हैं। वे लोग बच्चों को देखते रहते हैं लेकिन वे कभी उन पर ग़ौरो-फ़िक्र नहीं करते। अगर उन्होंने उन बच्चों को ‘ध्यान’ से देख लिया होता तो वे दुख-दर्द, घुटन और निराशा से मुक्त हो चुके होते।
आप बच्चों को ध्यान से देखिए, उनकी क्रियाओं को बारीकी से देखिए। कभी आप भी ऐसे ही थे। आपके घर में कोई छोटा मासूम बच्चा हो तो आप उसे गोद में लीजिए। आप देखिए कि वह सांस कैसे लेता है?, वह कैसे खुलकर हंसता है और कैसे वह अपने आपे में मस्त रहता है?
कभी आप भी यही सब करते थे। अब फिर से कीजिए। आप ख़ुद को एक मासूम बच्चा समझिए, जो अपने आप में मस्त है। जो हंसता है और मुस्कुराता है।
जब आप मानते हैं कि आप एक मासूम बच्चे हैं तो फिर आप मासूम बच्चे बन जाते हैं। आप अपने मन में, अपनी कल्पना में ख़ुद को जैसा देखते हैं, जैसा फ़ील करते हैं, वास्तव में आप वही हैं।
आप एक गोद के मासूम बच्चे की तरह, एक-दो माह के बच्चे की तरह नाभि तक गहरा सांस लीजिए। अपने सांस को अन्दर जाते हुए और उसे नाभि तक पहुंचते हुए और बाहर निकलते हुए फ़ील कीजिए। ध्यान रहे कि आपको प्राणायाम नहीं करना है। आपको पूरक, रेचक और कुम्भक आदि कुछ नहीं करना है। सिर्फ़ सादा तरीक़े से एक बच्चे की तरह गहरा सांस लेना है, नाभि तक। आपका सांस बदलते ही आपका भाव बदलने लगेगा।
सांस का भाव के साथ गहरा सम्बंध है। आदमी शान्त हो तो गहरा सांस लेता है और अगर कोई उसे अचानक डरा दे तो उसका सांस रूक जाता है। आदमी ख़ुश हो तो उसका सांस एक तरह चलता है और वह घबरा जाए तो उसका सांस दूसरी तरह चलने लगता है। भाव बदलता है तो आपका सांस भी ज़रूर बदलता है। बस, यहीं से एक सूत्र पकड़ लीजिए कि अगर सांस को बदल दिया जाए तो उसका भाव भी ज़रूर बदल जाएगा। अगर आप अचानक डर गए हैं तो आप गहरे गहरे नाभि तक सांस लीजिए। आपका डर विदा हो जाएगा और आप शान्त हो जाएंगे।
भाव का कर्म के साथ गहरा सम्बंध है। अगर आप शान्त होते हैं तो आप एक तरह बात करते हैं लेकिन जब आप क्रोध में होते हैं तो आप दूसरी तरह बात करते हैं।
कर्म का परिणाम के साथ गहरा सम्बंध है। आप शान्त भाव से जो बात कहते हैं, सुनने वाले पर उसका अच्छा असर पड़ता है और जब आप क्रोध में बात करते हैं तो सुनने वाले पर बुरा असर पड़ता है। आपके अच्छे कर्म का परिणाम अच्छा होता है और आपके क्रोध का बुरा नतीजा सामने आता है।
जब आप सांस लेने का तरीक़ा बदलते हैं तो आप अपने भाव को, अपने कर्म को और उनके नतीजों को भी बदलते हैं।
आप एक मासूम बच्चे की तरह नाभि तक गहरे गहरे सांस लेते रहिए और सजगता के साथ, पूरे शऊर के साथ अपने मन के भाव को, जज़्बात को देखते रहिए।
आप एक मासूम बच्चे की तरह हंसना और मुस्कुराना शुरू कर दीजिए और सजगता के साथ, पूरे शऊर के साथ अपने मन के भाव को, जज़्बात को देखते रहिए।
जितना ज़रूरी नाभि तक गहरा सांस लेना और हंसना-मुस्कुराना है, उतना ही ज़रूरी है सजगता के साथ, पूरे शऊर के साथ अपने मन के भाव को, जज़्बात को देखते रहना।
एक अवचेतन मन की क्रिया है और दूसरी चेतन मन की। सांस लेना और हंसना-मुस्कुराना अवचेतन मन की क्रियाएं हैं तो उन्हें सजगता और शऊर के साथ देखना चेतन मन की क्रियाएं हैं। जब आपके चेतन और अवचेतन मन, दोनों का तालमेल बैठने लगता है, तब आप एक महान उपलब्धि को प्राप्त होने लगते हैं।
आप अपने अंदर एक मासूम बच्चे को फ़ील कीजिए और थोड़े थोड़े समय बाद शांति और प्रेम के साथ धीरे धीरे यह कहते रहें कि
‘मैं एक बच्चा हूं, मासूम और प्यारा बच्चा। हंसना-मुस्कुराना मेरी आदत है। सब मुझे प्यार करते हैं। मेरा ख़याल रखते हैं। मैं मस्त हूं अपने आप में। मैं शान्त हूं।’
आप जितना ज़्यादा इसे दोहराएंगे, यह आपके अवचेतन मन में उतनी गहराई तक उतरता चला जाएगा और जो आपके मन में जाएगा, वही आपके जीवन में प्रकट हो जाएगा। आज आपके जीवन में, आपके व्यक्तित्व और आपके माहौल में जो कुछ है वह सब पहले आपके मन में गया, तब आपके जीवन में, आपके व्यक्तित्व और आपके माहौल में प्रकट हुआ। आपको अपना जीवन और अपने हालात, जो भी बदलना हो, उसके लिए आपको अपने अवचेतन मन की प्रोग्रामिंग को बदलना पड़ेगा।
इसमें हमने शान्ति के लिए ध्यान के दो प्रयोग बताए हैं। आप पहले प्रयोग को दो तीन हफ़्ते कर लें तो दूसरा प्रयोग, बच्चे की तरह फ़ील और एक्ट करने का प्रयोग कर सकते हैं। इस तरह आपकी शान्ति पहले से ज़्यादा गहरी हो जाएगी। आप चाहें तो पहले प्रयोग को और ज़्यादा समय तक कर सकते हैं।
इसी तरह आप पहले तरीक़े से ध्यान किए बिना भी दूसरे तरीक़े से शान्ति पा सकते हैं और जब तक चाहें, तब तक आप यह ध्यान कर सकते हैं। हर तरह आपका भला ही भला होने वाला है।

One thought on “अपने जीवन को बदलिए, सिर्फ़ एक दिन में

  • विजय कुमार सिंघल

    एक और अच्छा लेख, डॉ साहब. उपयोगी लगता है, पर कितना उपयोगी है, यह बिना स्वयम अनुभव किये नहीं बताया जा सकता. देखना है कि मुझे अनुभव करने का अवसर मिलता है कि नहीं.

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