धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

धर्म/मजहब पर विश्व प्रसिद्ध लोगो के विचार

यूँ तो मजहब के ठेकेदार हमेशा से जनमानस को “ईश्वर” के जाल में फंसा के उनका शोषण करते आये हैं , पर जब किसी ने भी इनके “काल्पनिक” ईश्वर और उसके नाम पर चलने वाले धंधे के शोषण से लोगो को मुक्त करने का प्रयास किया है उसे इन लोगो ने “नास्तिक ” करार दिया है ।

मजहब की धारणा आम तौर पर आदमी के स्वार्थ से पूरी तरह से जुडी है , दरअसल जब अपने सामने रखे जीवन की उलझनों को अपनी समझ से सुलझा नहीं पाता तो वह अनंत रहस्य मान कर सुलझाना छोड़ देता है और उस के कथित काल्पनिक ‘कर्ता-धर्ता ” को अपने से बड़ा जान के उसके सामने चुपचाप सर झुक लेता है । बस इसी “सर झुकाने ” को मजहब गौरव पूर्ण “श्रद्धा ” कहता है , जो की अज्ञान पर टिका होता है ।

कुछ विश्वप्रसिद्ध लोगो के धर्म /मजहब के बारे में विचार

१ – आचार्य चार्वाक का कहना था –
” इश्वर एक रुग्ण विचार प्रणाली है , इससे मानवता का कोई कल्याण होने वाला नहीं है ”

२ – अजित केशकम्बल ( 523 ई . पू )
अजित केश्कंबल बुद्ध के समय कालीन विख्यात तीर्थंकर थे , त्रिपितिका में अजित के विचार कई जगह आये हैं , उनका कहना था –
” दान , यज्ञ , हवन नहीं ….लोक परलोक नहीं ”

३- सुकरात ( 466-366 ई पू )
” इश्वर केवल शोषण का नाम है ”

४- इब्न रोश्द ( 1126-1198 )
इनका जन्म स्पेन के मुस्लिम परिवार में हुआ था , रोश्द के दादा जामा मस्जिद के इमाम थे , इन्हें कुरआन कंठस्थ थी । इन्होने अल्लाह के अस्तित्व को नकार दिया था और इस्लाम को राजनैतिक गिरोह कहा था । जिस कारण मुस्लिम धर्मगुरु इनकी जान के पीछे पड़ गए थे ।
रोश्द ने दर्शन के बुद्धि प्रधान हथियार से इस्लाम के मजहबी वादशास्त्रियों की खूब खबर ली ।

5 – कॉपरनिकस ( 1473-1543)
इन्होने धर्म गुरुओं की पूल खोल थी इसमें धर्मगुरु ये कह कर को मुर्ख बना रहे थे की सूर्य प्रथ्वी के चक्कर लगता है । कॉपरनिकस ने अपने पप्रयोग से ये सिद्ध कर दिया की प्रथ्वी सहित सौर मंडल के सभी ग्रह सूर्य के चक्कर लगाते हैं, जिस कारण धर्म गुरु इतने नाराज हुए की कोपरनिकस के सभी सार्थक वैज्ञानिको को कठोर दंड देना प्रारंभ कर दिया ।

6 – मार्टिन लूथर ( 1483-1546)
इन्होने जर्मनी में अन्धविश्वास, पाखंड और धर्गुरुओं के अत्याचारों के खिलाफ आन्दोलन किया इन्होने कहा था ” व्रत , तीर्थयात्रा , जप , दान अदि सब निर्थक है ”

7-सर फ्रेंसिस बेकन ( 1561-1626)
अंग्रेजी के सारगर्भित निबंधो के लिए प्रसिद्ध, तेइस साल की उम्र में ही पार्लियामेंट के सदस्य बने , बाद में लार्ड चांसलर भी बने । उनका कहना था
“नास्तिकता व्यक्ति को विचार . दर्शन , स्वभाविक निष्ठां , नियम पालन की और ले जाती है , ये सभी चीजे सतही नैतिक गुणों की पथ दर्शिका हो सकती हैं ।

8 – बेंजामिन फ्रेंकलिन (1706-1790)
इनका कहना था ” सांसारिक प्रपंचो में मनुष्य धर्म से नहीं बल्कि इनके न होने से सुरक्षित है ”

9- चार्ल्स डार्विन (1809-1882)
इन्होने ईश्वरवाद और धार्मिक गुटों पर सर्वधिक चोट पहुचाई , इनका कहना था ” मैं किसी ईश्वरवाद में विश्वास नहीं रखता और न ही आगमी जीवन के बारे में ”

10-कार्ल मार्क्स ( 1818-1883)
कार्ल मार्क्स का कहना था ” इश्वर का जन्म एक गहरी साजिश से हुआ है ” और ” धर्म एक अफीम है ” उनकी नजर में धर्म विज्ञानं विरोधी , प्रगति विरोधी , प्रतिगामी , अनुपयोगी और अनर्थकारी है , इसका त्याग ही जनहित में है ।

11- पेरियार (1879-1973)
इनका जन्म तमिलनाडु में हुआ और इन्होने जातिवाद , ईश्वरवाद , पाखंड , अन्धविश्वास पर जम के प्रहार किया ।

12- अल्बर्ट आइन्स्टीन ( 1879-1955)
विश्वविख्यात वैज्ञानिक का कहना था ” व्यक्ति का नैतिक आचरण मुख्य रूप से सहानभूति , शिक्षा और सामाजिक बंधन पर निर्भर होना चाहिए , इसके लिए धार्मिक आधार की कोई आवश्यकता नहीं है . मृत्यु के बाद दंड का भय और पुरस्कार की आशा से नियंत्रित करने पर मनुष्य की हालत दयनीय हो जाती है”

13-भगत सिंह (1907-1931)

प्रमुख स्वतन्त्रता सैनानी भगत सिंह ने अपनी पुस्तक ” मैं नास्तिक क्यों हूँ?” में कहा है ” मनुष्य ने जब अपनी कमियों और कमजोरियों पर विचार करते हुए अपनी सीमाओं का अहसास किया तो मनुष्य को तमाम कठिनाईयों का साहस पूर्ण सामना करने और तमाम खतरों के साथ वीरतापूर्ण जुझने की प्रेरणा देने वाली तथा सुख दिनों में उच्छखल न हो जाये इसके लिए रोकने और नियंत्रित करने के लिए इश्वर की कल्पना की गयी है ”

14- लेनिन
लेनिन के अनुसार ” जो लोग जीवन भर मेहनत मशक्कत करते है और आभाव में जीते हैं उन्हें धर्म इहलौकिक जीवन में विनम्रता और धैर्य रखने की तथा परलोक में सुख की आशा से सांत्वना प्राप्त करने की शिक्षा देता है , परन्तु जो लोग दुसरो के श्रम पर जीवित रहते हैं उन्हें इहजीवन में दयालुता की शिक्षा देता है , इस प्रकार उन्हें शोषक के रूप में अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करने का एक सस्ता नुस्खा बता देता है ”

अत: , भले ही धर्म प्राचीन समय के समाज की आवश्यकता रहा हो परन्तु वह एक अन्धविश्वास ही था जो अपने साथ कई अन्धविश्वासो को जोड़ता चला गया . धर्म और अन्धविश्वास दोनों एक दुसरे के पूरक हैं , अन्द्विश्वसो का जन्म भी उसी तरह हुआ जिस तरह भांति भांति धर्मो का ।

इन धर्म के नाना प्रकार के अन्धविश्वासो के शिकार भी प्राय: गरीब लोग ही होते थे , सुविधों के आभाव उन्हें विज्ञानं और सच से काट देता था और वो गृहकलेश , वीमारी , प्राकर्तिक आपदाओं , निर्धनता आदि समस्याओं का समाधान के लिए टोन टोटके , तांत्रिको , बाबाओं , मौलवियों , ज्योतिषियों , ओझाओं आदि के चक्कर में आसानी से फसने लगे , और इन धूर्त लोग का पोषण धर्म कर रहा था ।

धर्म द्वारा पैदा किया उत्पादन हीन रोजगार ने निक्कमे शोषको का एक ऐसा वर्ग तैयार किया जो न सिर्फ विपदा और अभावग्रस्त मनुष्यों का आर्थिक एंव शारीरिक शोषण करते रहे बल्कि उन्हें झूठी दिलासा दे कर उनका मानसिक शोषण भी करते रहे और उनकी सोचने समझने की की क्षमता को भी कुंद करता रहा ।

आज जरुरत है धर्म के इन धंधेबाजो को जड़ से उखाड़ फेकने की, सुखद बात ये है की नयी पीढ़ी ये सब कर रही है ।
पाकिस्तान एक इस्लामी कट्टरता वाल देश है पर अब वंहा भी लोगो में आक्रोश बढ़ रहा है नयी पीढ़ी नास्तिकता की और बढ़ रही है , खबर के लिए यंहा क्लिक करे ।

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

3 thoughts on “धर्म/मजहब पर विश्व प्रसिद्ध लोगो के विचार

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने कुछ चुने हुए विद्वानों के विचार छापे हैं, ठीक है. लेकिन ज्यादा बड़ी संख्या ऐसे विचारकों और विद्वानों की है, जो ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हैं और उसको आवश्यक बताते हैं. अमर हुतात्मा सरदार भगत सिंह ने जो कहा है वह बहुत तार्किक है. इस पर गहराई से विचार कीजिये.
    मेरा अपना मानना है कि ईश्वर चाहे काल्पनिक ही क्यों न हो, उसके अस्तित्व में हमें विश्वास करना चाहिए. यह विश्वास समाज को बहुत सी बुराइयों से बचाए रखता है.
    जहां तक धर्म की बात है, उसका अधिकतर दुरुपयोग ही किया गया है. इसका मुकाबला नास्तिक बनकर नहीं, बल्कि धर्म के धंधेबाजों का खुला विरोध करके ही किया जा सकता है.

    • डॉ अनवर जमाल खान

      sahmat . किसी भी विद्वान के कथन का कोई प्रमाण नहीं है कि यह उसने कहा है या नहीं कहा है या उसके नाम से किसी ने और ने कहा है। लेखक महोदय ने उनकी किसी पुस्तक का भी कोई प्रमाण नहीं दिया है।

      जाली नोटों का चलन देखकर समाज के नागरिकों ने कभी देश की करेंसी का विश्वास नहीं खोया। इसलिए धर्म के नाम पर शोषण करने वालों को देखकर सच्चे धार्मिक व्यक्तियों की बात का विश्वास खो देना बुद्धिसंगत नहीं है।

      • विजय कुमार सिंघल

        धन्यवाद, डाक्टर साहब. सही कहा आपने. आजकल धर्म को समझे बिना उसका विरोध करने का फैशन चल पड़ा है.

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