अरब के मुसलमानों से उच्चतम था भारत का ज्ञान
जब इस्लाम की भारत में पहली जीत सिंध में हुई तो इस्लाम के लिए यह कोई नई चीज नहीं थी क्यों की इससे पहले इस्लाम कई मुल्को में युद्ध कर के जीत चूका था । पर इस विजय से मुस्लिम संस्कृति पर गहरा असर पड़ा, मुसलमान भारत में आये तो भारत की उच्च संस्कृति देख कर विस्मित हुए । ऐसी उच्च संस्कृति उन्होंने और कंही नहीं देखि थी, अरब ऐसी उच्च संस्कृति से अनभिज्ञ था ।
हिन्दू दर्शन,हिन्दू ज्ञान की उच्चता तथा उसकी विशिष्ठता और विविधिता से वह लोग विस्मित हो गए, उनके लिए यह बहुत आस्चर्य की बात थी।
उन्होंने देखा की जिस कुरान को वह लोग एकमात्र आध्यात्मिकता का स्रोत मानते थे वह एक अल्लाह का आदेश देती है, उन्हें पता चला एक ईश्वर का रहस्य हिन्दू दर्शन शास्त्रियों को उनसे पहले ही पता था। अरब के मुसलमानो ने पाया की मानव के ज्ञान की उचाइयों को छुने वाले विभिन्न कलाये जैसे संगीत, चाकित्सा,निर्माण कार्य, शिल्पी, कृषि आदि में भारतीय उनसे बहुत आगे थे।
अरबो ने विभिन्न भारतीय कलाओ के विद्वानों का आश्चर्य और उत्सुकता से आदर सहित स्वागत किया । मुस्लिम इतिहासकार तबारी ने भारतीयों के ज्ञान के विषय में लिखा की ” खलीफा हारून ने दु: साध्य और भयानक पीड़ादायक रोग के उपचार के लिए एक भारतीय वैध उनके पास भेजा . वैध ने रोग का निदान सफलतापूर्वक किया और हारून जल्द स्वस्थ हो गए । उन्होंने उस वैध को सकुसल भारत भिजवा दिया ”
अरब मुसलमानों ने भारतीयों से प्रशासन चलाने की व्यवाहरिक कला सीखी और बड़ी संख्या में ब्रह्मणों अधिकारियो को नियुक्त किया । अरब मुसलमानों ने ब्रह्मणों से सहायता ली ताकि वह भारत में सुचारू रूप से और प्रभावी ढंग से राज काज संभल सके ,इसके बदले में ब्रह्मणों ने अरब मुसलमान शासको की खूब आवभगत की।
उस समय भारत बहुत उच्च बौद्धिक शिखर पर खड़ा था, दर्शन, खगोल,औषध, गणित, आदि कला और संस्कृति को सीखने के लिए अरब के मुस्लिम विद्वान बौद्ध भिक्षुओ और हिन्दू ब्रह्मणों के चरणों में बैठ गए। मंसूर की खिलाफत( 753-774 ई) में अरब के विद्वान बगदाद गये और अपने साथ ब्रह्मदत्त की ‘ ब्रह्म सिद्धांत’ और ‘ खंड खंड्यका’ नाम की पुस्तके अपने साथ ले गए। इनका अनुवाद अरबी में अरब शासको ने भारतीय विद्वानों की मदद से करवाई और खगोल विद्या के पहले सिद्धांत इन्ही पुस्तको से सीखा।
हारून की खिलाफत के दौरान वंहा के शासक बरमाक्स के परिवार वालो से हिन्दू ग्रन्थ अध्यन को काफी सहयता ,हलाकि उसने इस्लाम काबुल कर लिया था पर उसका झुकाव हिन्दू धर्म के प्रति ज्यादा था । उसने अपने लोगो को भारत भेजा ताकि वह भारत के विद्वानों से औषध, फलित ज्योतिष, शिल्पी आदि विषयों पर अध्यन कर सके। उन लोगो ने भारतीय विद्वानों को भी बगदाद निमन्त्रण भेजा गया और उन्हें उच्च पदों पर नियुक्त किया गया जैसे ‘- औषधि, दर्शन, बिष विद्या, ज्योतिष, आदि। कई मुख्य भारतीय दर्शनों का संस्कृत से अरबी में अनुवाद करवाया गया ताकि अरब के मुस्लिम इसका फायदा ले सके ।
यह विडंबना रही की एक तरफ हिन्दू विद्वान् इस्लाम को भारतीय शिक्षाए और शास्त्र का ज्ञान खुले दिल से रहे थे तो दूसरी तरफ हिन्दू धर्म का ही एक अंग जिसे शुद्र /दलित कहा गया उसकी दशा समाज में बाद से बदतर थी । हिन्दू विद्वान अरब को शिक्षा,दर्शन,मानवता और विज्ञान का ज्ञान दे रहे थे पर अपने ही धर्म के अछूतो से अमानवीय व्यवहार जारी रखे हुए थे ।
इतिहास की कम जानकारी से व्यक्ति क्यों भटकता रहता हैं आप इसके प्रत्यक्ष उदहारण हैं। बंधू जिस काल में भारतीय मनीषी अरब क्या समस्त विश्व को अपने ज्ञान द्वारा प्रकाशित कर रहे थे उस काल में भारत में जातिप्रथा जैसे आडम्बर का प्रचलन ही नहीं था। खेद हैं की इतनी छोटी से बात से आप अनभिज्ञ हैं।
केशव जी अच्छा लेख है , लेकिन यह भी भूल नहीं सकते कि मंदिर और बोधि मठ ढाए गए . जैसे विजय भाई जी ने लिखा है नालंदा तक्षिला जैसे विश्व विद आलिया जिस में लाखों ग्रन्थ थे अग्नि भेंट कर दिए. अफगानिस्तान का बुध का स्टैचू तो अभी कुछ ही वर्ष हुए हैं बम्बों से उड़ा दिया गिया . हाँ जो दलितों की बात लिखी है इस से मुझे भी गुस्सा आता है कि किसी हिन्दू महात्मा ने इस कोहड़ को दूर करने की कोशिश नहीं की .मैं यहाँ इंग्लैण्ड में रहता हूँ और यहाँ के बच्चे उंच नीच को जानना नहीं चाहते और आपिस में शादीँ करवा रहे हैं .
अच्छा लेख. वास्तव में अरबी मुसलमानों में ज्ञान नाम की कोई चीज थी ही नहीं. अगर कभी रही भी होगी तो उसको धर्मांध मुसलमानों ने उसी तरह नष्ट कर दिया होगा जैसे नालंदा और तक्षशिला के वि.वि. जलाये गए थे. इस्लाम केवल एक विध्वंशक विचारधारा है, इससे किसी सकारात्मक बात की आशा करना व्यर्थ ही है.