संस्मरण

संस्मरण : हरितालिका तीज की याद

बिहार में भादो के शुक्लपक्ष के तृतीया को हरितालिका तीज मनाते हैं …. इस दिन महिलाएं निर्जल रहकर व्रत करती है …. इस व्रत का पूजन रात्रि भर चलता है … इस दौरान महिलाएं जागरण करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं …. पूजन दूसरे दिन सुबह समाप्त होता है तब महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं और अन्न ग्रहण करती हैं ….

ईद घूमता रहता है इसलिए भादो में भी होता है ….

१९७९ में तीज और ईद एक समय ही पडा था ….. उसी साल मेरे बड़े भैया की शादी हुई थी …. घर में एक बार फिर से खुशियाँ लौट रही थी ,मझले भैया के मौत के बाद से ….. माँ उत्साह से सारी तैयारियाँ कर रही थीं ….. भाभी का पहला तीज था तो तैयारी भी ज्यादा हो रही थी …… 22 अगस्त को तीज था 20 अगस्त को मेरी माँ की मृत्यु हो गई …… बहुत वर्षों तक मुझे ईद तीज से चिढ सी रही ….. लेकिन जबसे दूसरों की खुशियों का ख्याल रखना आया …. अपने गम छिपाना आ गया …..

धर्म बताओ
हिन्दू है या मुस्लिम
दूज चन्द्र का .

अनूप प्यारा
भाई दूज या ईद
चन्द्र हमारा

सखियाँ दोनों
सावन में मिलती
ईद व तीज
ईश – ख़ुदा की कृपा
हम खुश क्यों नहीं …..

हम ….. ह=हिन्दू ….. म=मुस्लिम

विभा

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “संस्मरण : हरितालिका तीज की याद

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विभा जी , दुःख और सुख दोनों ही जिंदगी का हिस्सा हैं , अक्सर होता है कि अचानक ख़ुशी के अवसर पर कुश बुरा हो जाए तो हमें उस दिन को याद करने की भी इच्छा नहीं होती . उस दिन से ही हमें नफरत सी हो जाती है , यह सभाविक ही है . यह दुनीआं तो है ही दुखों का घर , दुःख ज़िआदा सुख कम . दुःख आते हैं लेकिन कुछ समय बाद हम को अपने आप से समझौता करना ही पड़ता है . बुरा नहीं मनाना , हमारे घर के सभी सदस्य खुछी के अवसर पर ड्रिंक लेते हैं . २७ सतम्बर १९७३ को अचानक मेरे डैडी की एक हादसे में मृतु हो गई और हम बच्चों के लेकर इंडिया आ गए . घर में उदासी तो थी ही लेकिन मेरे बाबा जी अभी अछे भले थे , वोह अपना दुःख अपने दिल में ही समेटे हुए थे . चार हफ्ते बाद लोहड़ी थी , सब और खुशीआं थी , पंजाब में इस उत्सव पर लोग ड्रिंक भी लेते हैं . हम तीन भाई थे . मेरे बाबा जी ने जेब से १०० रूपए का नोट निकाला और बोला बेटा जो होना था हो गिया . जाओ इस से विस्की की बोतल खरीद लो और लोहड़ी ख़ुशी से मनाओ . जो होना था वोह हो चुका, अब शोक को ख़तम करो , तुमारे डैडी शोक करने से वापिस नहीं आएँगे . जिंदगी चलनी चाहिए . हम तीनों ने बोतल खरीदी और एक पैग बाबा जी को भी दिया . उस रात कितने दिनों बाद हम जी भर कर हँसे . अब बाबा जी इस दुनीआं में नहीं हैं लेकिन उन की याद हमेशा आती है कि कितने जिंदादिल थे वोह . इस के बाद बहुत मुसीबतें आईं जो अक्सर जिंदगी में होता है लेकिन हम ने बाबा जी के बचनों को हमेशा याद रखा , जिस से हमें बहुत फैदा हुआ . मन को मज़बूत रखा . बस जीना इसी का नाम है .

  • विजय कुमार सिंघल

    विभा जी, संस्मरण ठीक है. लेकिन लगता है कि आप हरियाली तीज और हरितालिका तीज में अंतर नहीं कर पा रही हैं. ये दोनों अलग-अलग त्यौहार हैं. हरियाली तीज सावन के महीने में आता है, जबकि हरितालिका तीज भादों में. हरियाली तीज के दिन झूला झूला जाता है, जबकि हरितालिका तीज के दिन करवा चौथ की तरह निर्जल व्रत रखा जाता है.

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