कहानी

मंथन

सीता के मन मे आज अपने तीस साल के वैवाहिक जीवन के बारे मे मंथन चल रहा है|

‘एक बड़े ऑफिसर की पत्नी हो तुम, अभी तक सलीके से रहना नहीं आया तुम्हे! गाँव को छोड़े बरसो हो गये है|,सीता को उसके पति रामलाल जी ने डाँटते हुए कहा| रामलाल जी को गाँव से शहर आये हुए तीस साल हो गये थे;पर सीता के रहन-सहन के अंदाज मे कोई बद्लाव नहीं आया,और वो चाहती भी नहीं थी| उसका मानना था ,इंसान चाहे दुनिया के किसी भी हिस्से मे जाकर रहे अपने शहर की भाषा,रहन-सहन कभी नहीं भूलना चाहिए| यही कारण था,सीता को अब तक शहर की हवा छु तक नहीं गयी थी|

रामलाल जी और सीता मे अक्सर इस बात को लेकर झगड़ा होता रहता था| पति का स्वभाव बहुत गुसैल था, इसलिए घर मे इतने नौकर होते हए भी सीता उनका हर काम अपने हाथ से करती थी| सुबह से शाम तक सीता घर के काम मे नौकरों की मदद करती रहती थी| उसका सोचना था, घर की ग्रहणी जितना घर को सहेजती है, उतना नौकर नहीं कर सकता|

रामलाल जी सरकारी खजाने मे ए.टी.ओ. की पोस्ट पर थे| पत्नी से कभी प्यार से बात नहीं करते थे; पर ऑफिस मे उनके सद्व्यवहार के और इमानदारी के चर्चे थे| जब तक पति ऑफिस नहीं चले जाते, सीता चैन की सांस नहीं ले पाती थी;पता नहीं कब किस बात पर उनका गुस्सा भडक जाये घर मे अशांति हो जाये| उम्र के इस पड़ाव तक उसने कभी चैन की सांस नहीं ली| फिर भी पति खुश नहीं|

तभी नौकर ने आकर बताया ”मेम साहब, साहब आ गये”. सीता जल्दी से पोर्च की और गयी; देखा पति तमतमाए हुए दरवाजे की और ही आ रहे थे| वो डर के मारे वापस मुड गयी| रसोई घर मे चाय का पानी गैस पर चढाया, नाश्ते की तैयारी मे लग गयी|

चाय-नाश्ता लेकर वो बैठक मे गयी| वो तो हैरान रह गयी! पति बहुत गुस्से मे थे| साथ मे एक ऑफिस का कर्मचारी भी बैठा था| जैसे ही सीता बैठक मे पहुंची,उन दोनों मे हो रही बात -चित बंद हो गयी| सीता को कुछ समझ नहीं आ रहा था; हाँ, इतना जरुर वो जानती थी आजकल ये बहुत तनाव मे रहते है पता नहीं क्या हुआ है!

नाश्ता टेबुल पर रख कर वो अपने कमरे मे आ गयी| सोचने लगी कुछ तो हुआ है| ये तो मुझे कभी बतायेंगे नहीं| किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा कर उसने मन ही मन कुछ तय किया| और वो गाँव की औरत सीता पहली बार अपने पति की आज्ञा के बिना घर से बाहर निकली|

रामलाल जी के दोस्त शर्मा जी उन्ही की ऑफिस मे कैशियर थे ; उनके घर जाकर अपने पति के बारे पता लगाया | वो ये सब जान कर हैरान रह गयी! ”भाभी जी हमने आपको बताया नहीं, आपको फ़िक्र हो जाती,रामलाल जी को किसी ने रिश्वत के झूठे केस मे फंसाया है| सब जानते है,वो कितना ईमानदार है,कभी किसी से एक पैसा नहीं लिया तो अब क्या लेगा, अब तो एक साल बाद रिटायर होने वाले है|,शर्मा जी ने कहा |

सीता घर आ गयी| शाम को उसने पति से कहा ”आपने अभी तक मुझे अपनी धर्मपत्नी बनने का सौभाग्य नहीं दिया,तभी आप अकेले इतने दिनों से परेशान हो रहे हो,मुझे कुछ नहीं बताया |,

रामलाल जी ने पहली बार पत्नी के प्यार को महसूस करते हुए कहा ”कैसे बताता तुम्हे! कभी प्यार से तेरा नाम तक नहीं लिया| मै भीतर से कमजोर हूँ तेरे प्रति अपना व्यवहार सब समझता था; पर बाहर से कठोर हूँ तो कभी तुम्हे अपने प्यार को महसूस ही नहीं होने दिया| पर तुमने फिर भी अपना पत्नी धर्म निभाया,मुझे माफ़ कर देना|पर तुम्हे पता कैसे लगा?

” मैने आपके दोस्त शर्मा जी से पता लगाया था, आप बिलकुल भी फ़िक्र ना करे,आप पर सबको पूरा भरोसा है| जल्दी ही आप दोष मुक्त हो जाओगे”| ,पत्नी से ये सब सुनकर रामलाल जी ने राहत की साँस ली| पत्नी का अपने जीवन मे कितना महत्व है वो आज जान पाए थे|

शांति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

2 thoughts on “मंथन

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी, बहिन जी. पत्नी से पति को बहुत संबल मिलता है, चाहे वह शाब्दिक ही हो. पत्नी से आशा भरे दो शब्द सुनकर पति अपने सब तनाव झेल जाता है. लेकिन ऐसी समझदार पत्नियां कम होती हैं.

    • शान्ति पुरोहित

      शुक्रिया विजय कुमार भाई जी

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