कविता

सूरज

धीरे-धीरे

अस्त हो गया सूरज

पच्छिम में

 

समय ने उतार दी

दिन की पहिरन

 

स्याह परिधान में

निखर आया एक नया रूप

 

घरौंदों को वापस होते

पक्षियों की चहचहाहट

गूँजती है हर तरफ

 

लेकिन इस गहराते अंधकार के बीच

दिन के लेखे में जोड़ता-घटाता

गुमसुम-सा मैं

असफलताओं के घेरे में

हताश-निराश

 

तभी अचानक

दैदीप्यमान हो उठा

दिल के कोने में

आशाओं का सूर्य

रगों में पैठते अँधकार को छाँटने

– बृजेश नीरज

बृजेश नीरज

साहित्यिक परिचय– नाम- बृजेश नीरज पिता- स्व0 जगदीश नारायण सिंह गौतम माता- स्व0 अवध राजी जन्मतिथि- 19-08-1966 जन्म स्थान- लखनऊ, उत्तर प्रदेश भाषा ज्ञान- हिंदी, अंग्रेजी शिक्षा- एम0एड0, एलएल0बी0 लेखन विधाएँ- छंद, छंदमुक्त, गीत, सॉनेट, ग़ज़ल आदि ईमेल- brijeshkrsingh19@gmail.com निवास- 65/44, शंकर पुरी, छितवापुर रोड, लखनऊ-226001 सम्प्रति- उ0प्र0 सरकार की सेवा में कार्यरत कविता संग्रह- ‘कोहरा सूरज धूप’ साझा संकलन- ‘त्रिसुगंधि’ (बोधि प्रकाशन), ‘परों को खोलते हुए-1’ (अंजुमन प्रकाशन), ‘क्योंकि हम जिन्दा हैं’ (ज्ञानोदय प्रकाशन), ‘काव्य सुगंध-२’ (अनुराधा प्रकाशन) संपादन- कविता संकलन- ‘सारांश समय का’ मासिक ई-पत्रिका- ‘शब्द व्यंजना’ सम्मान- विमला देवी स्मृति सम्मान २०१३ विशेष- जनवादी लेखक संघ, लखनऊ इकाई के कार्यकारिणी सदस्य

3 thoughts on “सूरज

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी कविता बृजेश भाई .

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत सुन्दर कविता. ऐसी आशावादिता ही समाधान है.

  • राजीव उपाध्याय

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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