कविता

”कैसा हो ”

धूप शीतल हो तो,
कैसा हो….
मन निर्मल हो तो ,
कैसा हो ….
मेरे हर भावनाओं में तुम और ,
तुम्हारी यादों का बादल हो तो,
कैसा हो …….
आकाश में मदभरी काली घटा हो
फिजाओं में हर रूप तुम्हारा घुला हो
तेरे – मेरे दरम्यान अब,
दिल की चाहत का मंजर हो तो
कैसा हो ….
चन्दन से महकता हर लम्हा हो
हर लम्हों में तुम्हारा चेहरा हो
करूँ जब नजर का वार तुमपर
बरसे नभ से बादल तो
कैसा हो …..
कभी जब तुम रहो खामोश
और मैं बन जाऊं चंचल हवा
और महक जाये हर उपवन तो
कैसा हो ………

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

2 thoughts on “”कैसा हो ”

  • विजय कुमार सिंघल

    श्रेष्ठ कविता.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूबसूरत कविता , अपनी भावना को प्रकट करने का इस से ज़िआदा तरीका किया हो सकता है ? धन्यवाद .

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