कविता

प्रेम पुष्प बरसाते जाना,

प्रेम पुष्प बरसाते जाना,

अंतर्मन में प्रीत बसा कर तुम प्रेम पुष्प बरसाते जाना,

श्वास श्वास में नाम प्रभु का हर पल सिमरन करते जाना

कभी भी मुश्किल का पल आये कभी न उस से तुम घबराना,

प्रभु पर रख विश्वास आस की ज्योति सदा तुम जलाते जाना ,

विनती करना सदा प्रभु की कभी किसी का दिल ना दुखाना

नित्य अपने सच्चे  मन से उस मालिक का तुम ध्यान लगाना,

पृथ्वी जल सूरज गृह तारे, यह सब हैं उसकी ही रचना

ऐसे रचनाकार की शक्ति में अपना विश्वास जमाना

नेकी की तुम राह पे चलना सत्य मार्ग ही सदा अपनाना

ऐसे सुख पाओगे उस प्रभु से, देख के हैरत करे  ज़माना,

सभी को अपना मित्र समझना कभी ना वैर भाव दिखलाना

परोपकार का फल मीठा है, इसको जीवन में आजमाना

सुख दुःख तो आते जाते हैं, कभी न इनसे तुम घबराना

प्रभु को अपने बसा के मन में, अपने सारे फ़र्ज़ निभाना

संभल संभल कर स्वयं भी चलना, औरो को गिरने से बचाना

प्रभु चरणो में बस जाना,नहीं इससे अच्छा कोई और ठिकाना

द्वेषाग्नि में कभी ना जलना,सदा  शीतलता की सरिता बहाना

प्रीत सुंगंध इस जग में फैले, कदम कदम पर पुष्प खिलाना

अंतर्मन में प्रीत बसा कर तुम प्रेम पुष्प बरसाते जाना

श्वास श्वास में नाम प्रभु का हर पल सिमरन करते जाना

—जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

2 thoughts on “प्रेम पुष्प बरसाते जाना,

  • विजय कुमार सिंघल

    बहत प्रेरक कविता.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी कविता .

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