कविता

कहते मुझसे शंकर भगवान्

कहते मुझसे शंकर भगवान्

मेरे नयन से बहे  नीर नीर 

हो गयी मैं पीर पीर 

हृदय में भर आये क्षीर क्षीर 

हे शिव जी 

मेरा  तुमसे विशेष हो गया है लगाव 

मुझ पर ऐसा पड़ा है भक्ति भाव का प्रभाव 

मै  हो गयी हूँ शिव की शिवरी 

हो गयी शिव जी की बावरी 

अब मुझे और  कुछ भी नहीं है ज्ञान 

मै  लगाती हूँ 

हर समय शिव जी का ध्यान 

लेती हूँ शिव जी का मन ही मन  नाम 

हृदय की स्लेट पर उभर आते है 

अपने आपसे शिव जी के द्वारा 

दिए शब्दों  से सार 

बन जाते हैं वे फिर शिव भजन 

खुद ब  खुद करने लगती हूँ शिव जी का गुणगान 

भर आते है ख़ुशी से मन में उमंग 

सुनाई देते है  नए गीत नए संगीत 

उन्हें ही फिर 

अपने भीतर रचने लगती  हूँ बिना व्यवधान 

लिखती जाओ  और लिखती जाओ 

कहते मुझसे शंकर भगवान् 

 

बरखा ज्ञानी 

 

साध्वी बरखा ज्ञानी

बरखा ज्ञानी ,जन्म 10-05, रूचि शिव भकत, निवास-रायपुर (छत्तीसगढ़)

2 thoughts on “कहते मुझसे शंकर भगवान्

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • साध्वी बरखा ज्ञानी

      dhnyvaad vijay kumar singhal ji

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