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साहित्य साधना

साहित्य आर्यसमाज की सबसे अनमोल संपत्ति हैं जिसकी महता को शब्दों में बखान करना संभव नहीं हैं। विगत एक वर्ष में दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा द्वारा नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा संचालित पुस्तक मेलों में स्टाल लगाकर वैदिक साहित्य को जन जन तक पहुँचाने का प्रयास किया गया जिसके सार्थक परिणाम निकले। पाठकों को जानकार प्रसन्नता होगी की पिछले एक वर्ष में दिल्ली सभा द्वारा 15 लाख रुपये
का साहित्य पुस्तक मेलों के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाया गया हैं। अकेले अंतर्राष्ट्रीय दिल्ली पुस्तक मेले में 7 लाख रुपये का साहित्य बिका था जिसमें 50 वेदों के सेट एवं 20000 सत्यार्थ प्रकाश को 10 रुपये मूल्य पर आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट के सहयोग से वितरित किया गया था। चंडीगढ़, मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, मंडी (हिमाचल प्रदेश), श्रीनगर, त्रिवेंद्रम(केरल)  के पुस्तक मेलों में
आर्यसमाज के साहित्य ने न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करी अपितु प्रभावशाली ढंग से प्रचार भी किया। यह कार्य किसी बड़े आर्य महासमेल्लन से भी अधिक सार्थक एवं वांछित परिणाम देने वाला हैं। मार्च 2015 तक गुवहाटी, कटक, देहरादून, जोधपुर, पटना एवं कोलकाता में पुस्तक मेलों में भाग लेने का विचार हैं। इस वर्ष का लक्ष्य 30 लाख रुपये के साहित्य को वितरित करना हैं।

पुस्तक मेलों में भाग लेने के लाभ।

1. पुस्तक मेलों में जिज्ञासु प्रवृति के स्वाध्यायशील युवक साहित्य की खोज में आते हैं। वैदिक साहित्य वहां पर प्राय: नदारत ही रहता हैं। जिसके कारण वेदों के पावन सन्देश को जानने से वे वंचित रह जाते हैं। सत्य ज्ञान के प्रचार प्रसार से ही समाज का कल्याण संभव हैं। ऐसे में पुस्तक मेला संसार को स्वामी दयानंद का सन्देश देने का उचित अवसर प्रदान करता हैं।
2. अन्य मत-मतान्तर अपने साहित्य का प्रचार बड़े जोर से करते हैं। ऐसे में अपरिपक्व युवा मस्तिष्क का भ्रमित होना निश्चित हैं। सत्य के ग्रहण करने एवं असत्य के त्याग के स्वामी दयानंद के सन्देश को जमीनी तौर पर किर्यान्वित करने में साहित्य का योगदान अप्रतिम हैं।
3. आर्य प्रकाशकों का उत्साह वर्धन होना हैं। उससे उनके द्वारा प्रकाशित होने वाले साहित्य को गति मिलती हैं और नए साहित्य सृजन का अवसर बढ़ता हैं।
4. आर्य समाज का संगठन निर्माण होता हैं। हमारा अनुभव रहा की जिस भी शहर में पुस्तक मेला लगा वहां के स्थानीय आर्य समाज, पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता तक का अमूल्य सहयोग मिला जिसके हम आभारी हैं। इस प्रकार के सामूहिक प्रयास से आर्यसमाज के संगठन का निर्माण मिलता हैं।
5. आर्य लेखकों का मनोबल बढ़ता हैं। पुस्तक मेलों में भागीदारी से हमें किस प्रकार के साहित्य की भविष्य में आवश्यकता रहेगी उस पर चिंतन करने एवं उसकी आर्य लेखकों के सहयोग से समुचित व्यवस्था करना का अवसर मिला हैं। इस वर्ष कई पुस्तकें पुन: प्रकाशित की जा रही हैं और कई पर आर्य लेखों द्वारा लेखन चल रहा हैं। यहकार्य पंडित लेखराम की अंतिम इच्छा को पूर्ण करने का एक प्रयास मात्र हैं।
6. मौन प्रचार हमारे समाज का गुण रहा हैं। पुस्तक मेलों में साहित्य साधना कुछ ऐसा ही कार्य हैं। आप क्षणिक लाभ की कभी अपेक्षा नहीं करते अपितु दूरगामी परिणाम आपका उद्देश्य हैं। साहित्य को लेकर जाने वाला व्यक्ति उससे कितना ग्रहण करेगा,उसे कितना लाभ होगा। इस प्रश्न का उत्तर भविष्य के गर्भ में हैं। मगर यह कार्य आर्यसमाज के भविष्य के लिए अवश्य लाभकारी हैं। यह तथ्य स्पष्ट हैं
इसलिए इस कार्य को मौन प्रचार कहना अतिश्योक्ति नहीं हैं।
7. सभा आदि पर सदा अकर्मयता के दोष लगते आये हैं। आशा हैं की इस प्रकार के कार्यों से न केवल सभा की छवि सुधरेगी अपितु प्रांतीय सभा से लेकर स्थानीय आर्यसमाजों को अनुकरण करने के लिए प्रेरणा भी मिलेगी।
8. पुस्तक मेले के माध्यम से तैयार होने वाला युवा आर्यसमाज का भविष्य बनेगा। इसलिए इस कार्य को भविष्य निर्माण कार्य कहना उचित होगा।

आप सभी के सुझाव, सहयोग, प्रेरणा इस कार्य को मिले तो यह कार्य अगले कुछ वर्षों में देश के प्रबुद्ध पाठक वर्ग पर आर्य विचारधारा का प्रभाव दिखाने की क्षमता रखता हैं। दानी सज्जन दान से सहयोग करे, श्रम दान देने वाले श्रम से सहयोग करे, आदरणीय विद्वान पुस्तक मेलों में जिज्ञासुओं की शंका समाधान से सहयोग करे। यही हमारी अपेक्षा हैं। यही स्वामी दयानंद के मिशन का कार्य हैं।

डॉ विवेक आर्य

One thought on “साहित्य साधना

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा समाचार. आर्ष साहित्य के प्रचार के लिए ऐसे आयोजन होते रहने चाहिए.

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