कविता

हरी हरी पत्तियां पीले पीले फूल

बांहों में उग आये

काँटों से

दुखी: न हो बबूल

पवन कहें तुमसे

संग मेरे झूम

नदिया कहें

झुलसी टहनियों से

परछाई बन

मेरी शीतल काया कों चूम

महा एकांत के वन के

मौन कों सुन

कराहती हुई पगडंडी के

थके नहीं पाँव

चलती ही चली जाए

इस गाँव से उस गाँव

मानो उसकी अपनी हो

अंतर्लीन कोई धून

मुझसे अभिन्न हो मनुज तुम

कमल पात पर

उछलती -लुढ़कती

यह बात कहें

शबनम की चैतन्य एक बूंद

हरी हरी पत्तियां पीले पीले फूल

 

kishor kumar khorendra

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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