प्रतीक
तेरी आँखों में कशिश है
मेरा मन भी रसिक है
तेरे ओंठ पंखुरियों से गुलाबी है
मुझमे भी प्यास अधिक है
तेरे मन दर्पण में मेरी ही छवि उभर आई है
मेरी चेतना मे गूँजता तेरा नाम अत्यधिक है
रूबरू मिल नही सकते दोनो
प्रेम में चिर विरह शरीक हैं
तन से तन का मिलन प्यार नही कहलाता
दो आत्माओं का मिलन प्रेम का प्रतीक है
किशोर कुमार खोरेंद्र
अच्छी कविता.
shukriya vijay ji