कविता : मौन रहकर भी…
मौन रहकर भी मुखर जो हो रहा है,
दर्द चेहरे से बयां वो हो रहा है ।
सोचा था जिऊँगा खुशहाल होकर ,
तनहा जीवन आज बोझिल हो रहा है ।
उम्र गुजरी सोचा नहीं मैंने कभी कुछ ,
जो नहीं सोचा वही सब हो रहा है ।
साथ थे मेरे हजारों हम सफ़र ,
आज क्यों सूना सा जीवन हो रहा है ?
मधुमास के दिन और रातें अब कहाँ ,
पतझड़ सा यौवन,उजड़ा सा आँगन हो रहा है ।
आंसू नहीं बहते मेरी आँख से अब ,
राजे दिल , कौन फिर खोल रहा है ?
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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अच्छी कविता.