ब्लॉग/परिचर्चा

न्याय व्यवस्था के सदर्भ में 

समाज में न्याय  अन्याय की बातें तो यदा कदा होती रहती हैं क्योंकि अन्याय है. तभी न्याय के लिए यह समाज प्रयासरत भी रहता है. लेकिन आजकल एक नई विडंबना हमारे समाज के लिए एक दैत्य बन कर खड़ी हो रही है. वो समस्या है देश के विभिन्न न्यायालयों में कोर्ट स्टाफ, न्यायाधीशों और सामान्य आदमी के साथ वकीलों की बढ़ती बदतमीज़ी भरी घटनाएं. सबसे अहम बात यह कि ऐसी घटनाओं के प्रति सरकार और उच्च न्यायालयों की उदासीनता ऐसी घटनाओं को और बढ़ावा दे रही है.

अभी इसी साल दिल्ली की तीस हज़ारी अदालत में एक अपराधी को धारा ३५४ के केस में पेश किया गया यानि किसी महिला के साथ बदतमीज़ी में. इस केस में जिस व्यक्ति ने यह अपराध किया था उसकी शिकायतकर्ता वकील की बहिन थी. जब जज साहब ने उस अपराधी को जमानत पे छोडा तो इस बात पे वकीलों ने कोर्ट में जमकर हंगामा किआ. कारण, क्योंकि ऐसा अपराध वकील की बहिन के साथ हुआ था.

इस घटना के ठीक १ महीने बाद एक वकील को इसी धारा में जब अदालत में पेश किया गया तो वकीलों ने पुलिस अफसर को पीट दिए क्योंकि इस बार यह करतूत किसी वकील की  थी. ०५/१२/२०१४ को इसी अदालत में एक जज ने किसी वकील की लापरवाही पर जब ३०००/- रु की कॉस्ट लगायी गयी तो इसी बात पर कोर्ट के बाहर फिर हंगामा किया गया.

आखिर क्यों??

मैं यह नही कहता कि  यह काम सब करते हैं. लेकिन कुछ लोग पूरे सिस्टम को खराब करते हैं. भारतीय कानून व्यवस्था में वकील की आवश्यकता केवल इसलिए बताई गयी है कि आम आदमी कानून से अनभिज्ञ होता है. इतना ही नही, वकील यानि अधिवक्ता को कोर्ट अफसर का ख़िताब दिए गया है. लेकिन इस तरह भरी कोर्ट में इस तरह की हरकते सिर्फ गुंडागर्दी को बढ़ावा देती हैं और कुछ नही. सामान्य आदमी, कोर्ट स्टाफ और जुडिशल अफसर भी जब वकीलों के इस व्यव्हार से दहशत महसूर करेंगे तो सिस्टम कितना तहस नहस होगा इसका अंदाज़ा भी नही लगाया जा सकता.

भारतीय विधि कानून व् नियम यह प्रावधान करते हैं कि जो सरकारी कर्मचारी कानून हाथ में लेता ह उसको निलंबित किया जाता ह और कानूनी कार्यवाही होती है. इस वजह से आज पुलिस अफसर, कोर्ट स्टाफ और अफसर चुपचाप यह दशहत सह रहे हैं. और कभी कानून का पालन करते हुए यदि कोई पुलिस अफसर किसी वकील के खिलाफ कार्यवाही करता है तो पूरी बार एसोशियेशन स्ट्राइक कर देती हैं जिस से कामकाज ठप्प हो जाता है.

गलत को हर हालत में गलत ही कहा जाना चाहिए. इसलिए सरकार और सभी हाई कोर्ट्स को यह अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए की जिनके हाथ में कानून के सहायतार्थ एक उत्तरदायित्व सौंपा गया  है उन्हें इस विश्वास को बनाने में योगदान देना चाहिए.

 

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- mk123mk1234@gmail.com

4 thoughts on “न्याय व्यवस्था के सदर्भ में 

  • विजय कुमार सिंघल

    भारत की न्याय प्रणाली में बहुत कमियाँ हैं, लेकिन वकीलों की गुंडागिरदी कोढ़ में खाज की तरह है. कानपुर में वकीलों का गिरोह अदालत में पेश होने आये अपराधियों की पिटाई पैसे लेकर करता है और पिटाई न करने के भी पैसे लेता है. आपने सही मुद्दा उठाया है.

    • महेश कुमार माटा

      धन्यवाद बंधू. वास्तव में अधिक चिंता का विषय यह है की इस बारे में उचित कदम भी  नही उठाये जा रहे. सरकार इसलिए कुछ नही करती क्युकी न्यायपालिका में ऐसी घटनाएँ उसके लिए मात्र मनोरंजन है और कुछ नही. और हाई कोर्ट में इतनी सुरक्षा प्रबंध हैं की वहां कोई ऐसी गुंडागर्दी कोई नही कर सकता. ऐसी घटनाएँ लोअर कोर्ट्स में होती हैं क्युकी यहां कोई सुरक्षा नही है. यद्यपि  सारे वकील ऐसा नही करते. उनमे बहुत से हैं जो अपना  उत्तरदायित्व समझते हैं लेकिन कुछ ऐसे हैं जो काले कोट के भेस में असामाजिक तत्व हैं और कुछ नही. 

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    भारत में इन्साफ है ही नहीं , ऐसे देश में इन्साफ किया मिलेगा यहाँ सजा काट लेने के बाद भी चार चार पांच पांच वर्ष तक भी उन्हें छोड़ा नहीं गिया . इस से तो इस्लाम का शरिया कानून ही बेहतर है , कमजकम फैसला तो जल्दी हो जाता है . यह अंग्रेजों का छोड़ा हुआ कानून लोगों को इन्साफ की वजाए पैसा खराब करने को मजबूर करता है . कई कई साल लग जाते हैं केस का फैसला होने में , और वकील हर पेशी के दौरान पैसा बनाते हैं . सलमान का केस ही देख लीजिये , कितने वर्ष हो गए हैं .

    • महेश कुमार माटा

      Ji, sahi kaha apne gurmel ji. Vastav me hmare desh me justice/nyay se kisi ko lena dena nhi h. Government ko, high court ko or supreme court ko sirf vaarshik aankde chahiye. Kitne case aaye or kitne band hue. Nyaay kitno ko mila iss se kisi ko sarokar nhi hai. Or nyayalya ka karmchari hone ke naate mai yh baat achhi trah samajh chuka hu ki hmare desh ki nyay pranaali bhagwan bharose hai.
      Hairani to yh hai ki judges kaam karne wale hain lekin syatem aisa bna dia gya h ki kalam bhi soch me hai….

Comments are closed.