कविता

गीत : अंत में ठहरे अकेले

अंत में ठहरे अकेले ।

बचपन में कुछ मीत मिले
मिल संग बहुत खेले कूदे
मोटर गाडी फिर रेल चली
फिर धनुष तीर बंदूक चली
तब पापा ने भेजा स्कूल
सारी मस्ती चकनाचूर ।।

ये मुसीबत कौन झॆले ।
अंत में ठहरे अकेले।।

नया नया स्कूल मिल गया ।
नया दोस्त अनुकूल मिल गया।
फिर यारी बढ़ गयी हमारी ।
दुनिया फिर से लगी थी न्यारी ।
दुर्दिन फिर से साथ हो गये ।
विद्यालय से पास हो गये ।

किससे मिलते ? कौन बोले ?
अंत में ठहरे अकेले ।।

कालेज का अब दौर आ गया।
जीने का अब ठौर आ गया ।
वो भी मिलती मै भी मिलता
दिल में कुछ कुछ होने लगता
दिली मुहब्बत बढती जब तक
सारी डिग्री पूरी तब तक ।

वक्त ने मुझको धकेले
अंत में ठहरे अकेले

जीवन ने फिर सीख दिया
नही रहम का भीख दिया
रोजी रोटी ढूढ़ लिया ।
फिर कड़वा सा घूट पिया ।
बाबुल का छूटा घर द्वार ।
दूर हुआ सारा परिवार ।

मन कहता घर मुझे बुला ले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।

फिर शादी से बीबी आयी ।
जीवन साथ निभाने आयी ।
स्वार्थ जगत से नाता लाई
तबतक खुश जब तलक कमाई
जब कुचक्र निर्धनता लाया
रिश्ता लगने लगा पराया

मतलब वाले सारे मेले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।

जीवन में परिवार बढ़ा
बच्चों का संसार बढ़ा
बच्चो पर सर्वस्व लुटाया
खूब पढ़ाया खूब लिखाया
देख वक्त ने बदला भेष
रोजी मिली उसे परदेश

जिन्दगी में फिर झमेले।
अंत में ठहरे अकेले ।।

जब बुढ़ापा आ गया
वक्त थोडा रह गया
अनसुना करने लगे तब
औपचारिक बन गये सब
वे दुवाए मौत की करने लगे थे।
जो कभी इस देह से मेरे बने थे ।

किसको किसको और तौले ।
अंत में ठहरे अकेले ।

मै अकेला ही चला था ।
मोह माया में बधा था ।
सत्य का उपहास करके
मै ठगा सोचा स्वयं पे ।
छोड़ सारी कामना मैं
चल पड़ा निज आत्मा मैं ।

सीख जीवन की यहाँ ले ।
अंत में ठहरे अकेले ।।

— नवीन मणि त्रिपठी
दूरभाष 9839626686

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com

2 thoughts on “गीत : अंत में ठहरे अकेले

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया गीत. जिन्दगी की सच्चाई को व्यक्त करता है यह !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    यही जिंदगी है , सभी का यही अंत है , इस लिए अपना कर्म करो , अपने लिए भी जिओ , कुछ बुढापे के लिए भी बचाओ , आखिर में इस जिंदगी से जाने के लिए भी हर दम तैयार रहो किओंकि जो इस दुनीआं में आया है उस ने एक दिन अवश्य जाना है . यह मैं इस लिए कह रहा हूँ कि मैं भी अब बूडा हूँ लेकिन जिंदगी का हर पल मज़े से जी रहा हूँ . बच्चों की जिंदगी में कभी दखल नहीं दिया , यहाँ तक हो सका उनकी मदद की . अब सभी पुत्र पोते हमें मिलने आते हैं , हम अकेले रहते हैं लेकिन अपने को अकेले नहीं महसूस करते . यही जिंदगी का भेद है , कर्म करो , फल की इच्छा ना करो नहीं तो दुःख ही दुःख है .

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