खट्ठा-मीठा : चालू मेरा नाम
नेताजी के बेटाजी बहुत दुखी हैं। जिस चालूपन पर उनके पिताश्री और उनका कापीराइट था उनको विरोधियों ने हथिया लिया है। बेचारे को बहुत क्षोभ है कि भाजपाई बहुत चालू हैं।
अब तक चालूपन पर नेताजी का एकाधिकार हुआ करता था। इस एकाधिकार को बनाये रखने के लिए उन्होंने क्या-क्या चालें नहीं चलीं। खुद को समाजवादी सिद्ध करने के लिए परिवार में ही सारे टिकट और अधिकार बांटे। अपने गांव सैफई के विकास के लिए वहां हेलीपैड और स्टेडियम तक बनवा डाले, भले ही वहां उनका ही उड़नखटोला उतरता हो और गांव के बच्चे कबड्डी खेलते हों।
चलते पुर्जे की तरह उन्होंने सैफई के गरीबों के मनोरंजन के लिए अरबों रुपये खर्च करके सैफई महोत्सव भी करा डाला। इतना ही नहीं अपने दिन पर वे विदेश से किराये पर मंगाई गयी बुग्घी पर भी चले। गरज कि स्वयं को चालू सिद्ध करने के लिए सभी पापड़ बेले।
लेकिन बुरा हो इन भाजपाइयों का। उन्होंने नेताजी से चालूपन सीख लिया और फिर उनकी ही चाल से मात देने की कोशिश करने लगे। ‘मियां की जूती मियां के सिर’ इसी को कहते हैं। लगता है कि अपने चालूपन से भाजपाई नेताजी और उनके कुनबे को चलाचली की बेला में धकेल देंगे। यही नेताजी के दुख का कारण है। दिल्ली की गद्दी तो कोसों दूर खिसक ही गयी है, अगर लखनऊ की गद्दी भी चली गयी, तो नेताजी को भी बोरिया बिस्तर बांधकर फिर सैफई चला जाना पड़ेगा।
लेकिन नेताजी ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। वे इतनी आसानी से भाजपाइयों के चालूपन में नहीं फंसेंगे। उनको नई तकनीक की खोज करनी पड़ेगी। उनके नये समधी चाराचोर लालू जी इसमें उनकी मदद करने के लिए तैयार होंगे। उनको अरबों का चारा पचाने का पुराना अनुभव है। वे भाजपाइयों के चालूपन की कोई न कोई काट भी अवश्य निकाल लेंगे।
भारती सिआसत भी एक गेम बन कर रह गई है , देश की किस को परवाह है ?
हा…हा…हा… सत्य बात !