कविता

कविता : सपने

सपने जो अच्छे सुनहले हो उन्हें दिल से लगा लीजिये
बुरे स्वप्न को एक स्वपन ही समझ भुला दीजिये
जिनका ख्याल आये उन्हें अपने दिल में बसा लीजिये
सवाल जो भी हो उन्हें जल्द से जल्द सुलझा लीजिये
ख्याल जो गुदगुदा जाये तो दिल खोल ठहाके लगा लीजिये
समय कही रेत मुठ्ठी में सा फिसल ना जाये
समय पर ही सब कार्य निपटा लीजिये

…………..सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

3 thoughts on “कविता : सपने

  • गुंजन अग्रवाल

    umda

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    चन्द लफ़्ज़ों में बहुत कुछ कह दिया , अच्छा लगा .

Comments are closed.