कविता

मानवता कंगाल हो गयी 

कलम भी आज काँप रही हैं, शब्दों की मासुमियत खो गयी—
मासूमों के, लहू से देखो,
धरती माँ, घायल हो गयी!
पिता की, पथरा गयी हैं आँखें,
माँओं की कोखें, सूनी हो गयी!
बहशी दरिन्दों की ,करतूतो से , आज मानवता, कंगाल हो गयी—–
जिनके आने के, इंतजार में,
बिछी रहती थी, जो आँखें !
कलेजे के, उन टुकडों, की जब,
सामने बिछी ,लाशें हो गयी!
किस तरह का ,कहर खुदा है,
तेरी खुदाई पर, सवाल उठा है!
माँयें बिना मोत, ही मर गयी, और पिता की, लाठी छिन गयी—
वो नर पिशाच, न जाने,
क्या माँ की, ममता होती!
रंगो मे जिनके, खून नहीं,
बारूदों का ,मैल भरा हो,
उनको जनने, वाली कोख ,
देखो आज,कलंकित हो गयी!
रहमत पर तेरी, आज सवालात, खुदा है, कहाँ तेरी, रहनुमाई, खो गयी—-
जहाँ गूँजती थी, किलकारी,
आज बियाबाँन, हो गयी !
हर घर ,शमशान हुआ,
पिता के सपनो की, अर्थी उठ गयी!
कलम भी आज, काँप रही हैं, शब्दों की, मासुमियत ,खो गयी—
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..राधा श्रोत्रिय”आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

One thought on “मानवता कंगाल हो गयी 

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कविता ! इस्लामी आतंकवादियों के मानवता की आशा करना व्यर्थ है. दानव हैं ये!

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