मां, तुम कितनी अच्छी हो ! -2
मां, मैं आ भी जाती दुनिया में,
तो बापू के कहने पर,
भैया मुझे दसवीं मंजिल से फेंक देते,
या पापा, किसी खण्डहर पर डाल आते,
जहां आवारा कुत्ते, आवारा कुलदीपकों की तरह
मुझे कतरा कतरा नोंच डालते,
या फिर चींटियां रेंग रेंग कर मेरे
नवजात कोमल शरीर में
रफ्ता रफ्ता नश्तर की तरह
मेरे रक्त की आख़िरी बूंद तक मुझे
धीरे धीरे पितामह भीष्म की तरह
अंतिम सांस तक पीड़ा के
पर्वत पर ले जाकर मारती,
मां, तुम सचमुच बहुत अच्छी हो,
जो तुमने मुझे खण्डहर के कुत्तों, सूअरों, चींटियों
और गन्दगी के अम्बार से बचा लिया,
और कोख में ही मरवाने का फैसला लिया,
मां, तुम कितनी अच्छी हो !
समाज की नीच सोच दिखती है और…. दर्द भरी है ….