कविता

पिंजरा

मेरे लिए तुम 

सूदूर आकाश में 

बादलों से बनी सुंदर आकृति हो 

मेरे लिए तुम 

पेड़ों  के झुरमुट में 

अपरिचित साए की हलचल   हो 

मेरे लिए तुम 

पतझड़ के वीरान जंगल में 

 अब तक 

पलाश का खिला हुआ सूर्ख पुष्प हो 

मेरे लिए तुम 

पर्वतों की श्रंखलाओ के बीच  से 

निकल आयी नूतन आशा की 

एक धूल धूसरित पगडंडी हो 

मेरे लिए तुम 

छिटकी हुई चांदनी हो 

जिसके स्निग्ध उजाले में 

मैं अपना सफ़र तय कर रहा हूँ  

पता नहीं मेरे जीवन यात्रा के रेगिस्तान में 

तुम मृगतृष्णा हो 

या 

सचमुच में मीठे जल से भरी हुई एक नदी हो 

?…

मैं तुम्हारी यादों से घिरकर 

स्वयं को उन्मुक्त महसूस करता हूँ 

न देह रूपी पिंजरा  रहता  है 

न जकड़े रहने का भय रहता है

किशोर कुमार खोरेन्द्र 

 

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

2 thoughts on “पिंजरा

  • वाह वाह , किया बात है.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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